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________________ सुबोधिनो टीका' सु. ८७ सूर्याभदेवस्य इन्द्राभिषेकवर्णनम् सामाणियसाहस्सीणं जाव आयरक्खदेवसाहस्सीणं सूरियाभस्स विमाणस्स, अण्णेसिं च बहूणं सूरियाभविमाणवासिणं देवाण य देवीण य आहेबञ्चं जाव महया महया कारेमाणे पालेमाणे विहराहि त्ति जय जय-सदं पउंजति ॥ सू० ८८ ॥ छाया-ततः खलु त पूर्याभ देवं चतस्रः सामानिकसाहस्यो यावत् पोडश श्रात्मरक्षदेवमा यः, अन्ये च बहवः सूर्याभराजधानी वास्तव्याः देवाश्च देगश्च महता महता इन्द्राभिषेकेण अभिपिञ्चन्ति, अभिषिच्य प्रत्येक प्रत्येक करतलपरिगृहीत शिर आवत मस्तके अञ्जलिं कृत्वा एवमवादिषुः'जय जय नन्द ! जय जय भद्र ! जय जय नन्द । भद्रते, अजित जय, जित', 'तण्णं तं सारयाभ देवं' इत्यादि । सत्राथ-(तएणं) इसके बाद (तं म्ररियामं दे) उस सूर्याभदेव का (चनारिसामाणि यमाहस्ताओ जात्र मोलस आयरक्ख देव साहसीओ अण्णे य सरियाभ रायहाणिवत्थना देवा य देवीओ य महया महया इदाभिसेएण अभिसिंचति) चारहजार सामानिक देखोने यावत् सोलहहजार आत्मरक्षक देनौने तथा अन्य और बहुत से मर्याभदेव की राजधानी में रहे हुए देवोंने और देवि. योंने अतिविशाल इन्द्राभिषेक से अभिषेक किया. अभिसिंचित्ता पत्तेय' पत्तय करयल परिगहियं सरिसाव मत्थए अंजलिं कट एवं क्यासी) अभिषेक करके फिर प्रत्येकने क्रम से दोनो हाथों को जोडकर उनकी अंजलि बनाई-और उसे मस्तक पर से घुमाकर-नमस्कार कर फिर ऐसा 'तएणं तं म्ररिथाभ देव” इत्यादि ! सुत्रार्थ-(त एण) त्या२पछी (तं मरियामं देवं) ते सूर्याल तो (चनारि सामाणिवसाहम्सीओ जाव सोलसआयरक्खदेवस्सा हस्सीओ अण्णे य बावे मूरियाभरायहाणिवत्थचा देवाय य देवोओ य महया महया इंदाभिसेएणं अभिसिंचंति) २ १२ सामानिवाये यावत् सोडM२ मात्मरक्ष वाली તેમજ બીજા પણ ઘણાં સુર્યાભદેવની રાજધાનીમાં રહેનારા દેવોએ અને દેવીઓએ पति व्य३३ न्द्रालिले ध्यो, मनिष ध्या. (अभिसिंचित्ता पत्तेयं पत्तयं करयल. परिग्गहिय सिरसावत्त मत्थए अंजलिकट्टु एवं क्यासी) मनिष ४ीन मांगे ક્રમશઃ બંને હાથને ભેગા કરીને અંજલિ બનાવી અને તેને મસ્તક પર ફેરવીને नभ७२ ४ा मने मा प्रमाणे विनाति ४२तां यु-(जय जय नदो, जय जय
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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