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________________ राजप्रनीयसूत्रे सुविरइयस्यत्ताणे उवचियखोमदुगु पट्टपडिच्छायणे आईणग-रूपघूर-णवणीय तूल-- फासमउए रत्तंसुयसंवुए सुरम्मे पासाइए जान पडिवे || सू० ७७ ॥ ५३० छाया--तस्य माणवकस्य चैत्यस्तम्भस्य पौरस्त्ये अत्र खलु महत्येका मणिपीठिका प्रज्ञप्ता, अष्ट योजनानि आयामविष्कम्भेण, चत्वारि योजनानि चाहल्येन सर्वमणिमयी अच्छा यावत् प्रतिरूपा । तस्याः खलु मणिपीठिकाया उपरि अत्र खलु महदेकं सिंहासनं प्रज्ञप्तम् । सिंहासनवर्णकः सपरिवारः । तस्य खलु माणकस्य चैत्यस्तम्भस्य पाचात्ये अत्र खलु महत्येका मणिपीठिका मज्ञप्ता, अष्ट योजनानि आयामविष्कम्भेण चत्वारि योज " 'तस्स माणगस्स चेइयख भस्स' इत्यादि । मुत्रार्थ तस्स माणचगस्स चेहयखं भस्स पुरस्थिमेणं एत्थण महेगा मणिपेठिया पण्णत्ता) उस माणवक, चैत्यस्तंभ के पूर्वदिग्भाग (पूर्वदिशा) में एक बहुत विशाल मणिपीठिका कही गई है, (अट्ठ जोयणाई आयामविक्खभेण चत्तारि जोयणाई चाहले सत्र मणिमई अच्छा जाव पंडिबा ) इसका आयाम और विष्कंभ आठ योजन का है, बाहल्य- मोटाई चार योजन की है यह सर्वात्मना मणिमय है, अच्छ है यावत् प्रतिरूप हैं. (तीसे ण' मणि पेडियाए ज्वरिं एत्थ ण महेगे सीहासणवण्णओ सपरिवारो) यहां पर सपरिवार सिंहासन का वर्णन करना चाहिये, ( तस्स णं माणवगस्स चेइयखभस्स पच्चत्थिमेण एत्थ णं महेगा मणिपेढिया पण्णत्ता) उस माणवक चैत्यस्तंभ की पश्चिम दिशा में एक विशाल मणिपीठिका कही गई हैं (अट्ठ 'तस्स माणवगस्स चेहयखं भस्स' इत्यादि -- सूत्रार्थ – (तम्स माणवगस्स चेइयखंभस्स पुरत्थिनेणं एत्थणं महेगा मणि पेढिया पण्णत्ता) ते भाव शैत्यस्तसनापूर्व हिग्लाग (पूर्वडिशा) भां मे अतिविशाम भाष्ययीहि अडेवाय छे. (अड जोयणाई आयाम विकखभेगं चत्तारि जोय. गाव चाहले सन्त्रमणिमई अच्छा जान पडिब्बा) भेना आयाम भने विष्णुल આ ચેાજન જેટલા છે. માહલ્ય–મેટાઇ ચારયેાજન જેટલી છે. આ સર્વાત્મના મણિમય " शछ छे, यावत् प्रति३ . (ती से णं मणिपे दिघाए उवरिं एत्थणं मदेगे सीहासणे पण्णत्ते) ते भडपीठानी उचर मे विशाण सिंहासन हवाय. ( महामणवण्णओ सपरिवारो) अडी सर्याश्वार सिहासननु वार्जुन ४ . (नसणं भागवगम्स चेयं भस्स पचत्थिमेण एत्थ णं महेगा मणिपेड़िया FL7) તે માણવક ચૈત્યસ્ત...ભની પશ્ચિમશિામાં એક વિશાળ મણિપીડીકા કહેવાય છે.
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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