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________________ सुनोधिटीका. सू. ७७ सुधर्म सभादिवर्णनम् । नानि वाहल्येन, सर्वमणिमयी अच्छा यावत् प्रतिरूपा। तस्याः खलु मणिपीठिकायाः उपरि अत्र खलु महदेकं देवशयनीयं प्रज्ञप्तम्। तस्य खलु देवशयनीयस्य अयमेतपो वर्णावासः प्रज्ञतः, तद्यथा-नानामणिमयाः प्रतिपादाः, सौवर्णिकाः पादाः, नानामणिमयानि पादशीकाणि, जम्बूनदमयानि गोत्रकाणि, बज्रमयाः सन्धयः, नानामणिमयं व्यूतं, रजतमयी तूली, तपनीयमयानि गण्डोपधानकानि । लोहिताक्षमयाणि बिब्बोकनानि तल्खलु शयनीयं जोयणाई आयामविक्ख भेण चत्तारि जोयणाई वाहल्लेग सब्बमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा) इस मणिपीठिका का आयामविस्तार आठ योजन का हैं, बाहल्य चोर योजन का हैं यह सर्वात्मना मणिमय है अच्छ हैं यावत् पतिरूप हैं,(तीसे णमणिपेढियाए उवरि एत्थ णं महेगे देवसय णिज्जे पण्णत्ते) इस मणिपीठिका के ऊपर एक विशाल देवशयनीय कहा गया है (तस्स णं देवसयणिज्जस्स इमे. यारूवे वण्णाबासे पणतो) इस देवशयनीय का वर्णन करने वाला पाठ इस प्रकार से कहा गया है-(तजहा-णाणामणिमया पडिपाया, सोबन्निया पाया णाणामणिमयाई पायसीसगाई) अनेक मणिमय इसके प्रतिपाद हैं. सुवर्ण के इसके पाद हैं, पादशीर्षक-पादाग्रभाग इसके अनेकविध मणिमय हैं, (जंबूणयामयाई गत्तगाई वइरामया संधीणाणामणिमए विच्चे-रययमया तूली, तवणिजमया गंडोचहाणया) गात्रक इसके सुवर्णमय हैं. संधिया इसकी वज्ररत्नमय हैं, व्यूतवान-इसका नानामणिमय है शय्या इसकी रजतमय है. गंडोपधानक इसके तपनीयमय सुवर्ण के हैं (लोहियक्खमया वियोयणा) (अट्ट जोयणाई आयामविक्ख भेण चत्तारि जोयणाई बाहल्लेण सध्यमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा) मा मणिधीन मायामविस्ता२। २।४ योनिटसा છે આહલ્ય ચાર એજનના છે. આ સર્વાત્મના મણિમય છે, અચ્છ છે યાવતુ પ્રતિરૂપ છે. (तीसे णं मणिपेढियाए उरि एत्थण महेगे देवलयणिज्जे पण्णत्ते) આ મણિપીઠિકાનિ ઉપર એક વિશાળ દેવશયનીય (દેવશય્યા) કહેવાય છે. (तस्सण देवसयणिज्जस्स इमेयारूवे वण्णावासे पण्णते) ॥ देवशयनीयर्नु वन २॥ प्रभारी छ. (सं जहा णाणामणिमया पडिपाया, सोवन्निया पाया, णाणामणिमयाइ' पायसीसगाई) भाभय ध! मेन प्रति छ. सोना। मेन पाह छ, पाणीप-liuon मेनn ugu माणसाना मना छ. (जंबूणयामयाइगत्तगाई वइरामया संघी जाणामणिमए विच्चे रययमयातूली, तवणिजमया गंडोवहाणया) मेना ॥ सोनाना छ, १००२त्ननी पनसी मेनी सधिमा छ, અનેક મણિઓને બનેલ એનો ભૂતવન છે. એની શય્યા રજતમય છે, એના पान तपनीय सुवष्णु ना गनेसा छे. (लोहियक्खमया विब्बोयणा) मेन धान
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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