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________________ ४.६ राजप्रश्रीसू दक्षिणे- दक्षिणस्यां दिशिर, चम्पकवनं पश्चिमे - पश्चिमायां दिशि३, आम्रवणमुनरे उत्तरस्यां दिशि । ते वनपण्डाः आयामेन -देण सातिरेकाणि-साधिकानि अर्ध त्रयोदशयोजनशतसहस्राणि - सार्धद्वादशलक्षप्रमाण योजनानि विष्कम्भेणविस्तारेण पञ्चयोजनशतानि पञ्चशतप्रमाण योजनानि । पुनस्ते वनखण्डाः प्रत्येकं प्रत्येकम् एकैकशः प्रकारपरिक्षिप्ताः- आवरणपरिवेष्टिताः पुनस्ते कृष्णाः- कृष्णवर्णाः, कृष्णावभासाः - यावति वनभागे कृष्णावभासपत्राणि सन्ति तावतिः चनभागे कृष्णवर्णावभासनं विशिष्टाः । 'वनखंडवण्णओ' वनः , म पण्डन्वर्णकः वनषडानां वर्णकः वर्णः वर्णनकारकः पदसमूहः औपपातिक सूत्रतो बोध्यः। तद्वयाख्या-सत्कृतायां पोयूपवर्षिणी टीकायां विलोकनीया ॥ ६१ ॥ तेसि णं वनसंडाणं अंतो बहुसमरमणिजा भूमिभागा पण्णत्ता, से जहानामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव णोणाविहपंचव सप्तपर्णवन दक्षिण दिशा में हैं, चम्पकवन पश्चिम दिशा में हैं, और आम्रवन उत्तर दिशा में है । ये वनपण्ड आयाम की अपेक्षा १२|| लाख योजन से कुछ अधिक हैं । और विस्तार की अपेक्षा पांचसौ योजन प्रमाण ये प्रत्येक वनखण्ड एक माकार से परिवेष्टित है । 'किण्हा, किण्हो भासा, हरिया हरियो भांसा' इत्यादि पदों के अर्थ का वर्णन पीयूपवर्षिणी टीका से जो कि औपपातिक सूत्र के ऊपर लिखी गई है वहां से जानना चाहिये, ये वन कृष्ण इसलिये कहे गये हैं कि इनका वर्ण कृष्ण है, तथा जिनने वनभाग में कृष्णावभासवाले पत्र हैं उतने वनभाग में वे चनपण्ड कृणवर्गात्रभासनविशिष्ट है । औपपातिक सूत्र में तीसरे सूत्र की टीका में यह सब वर्णन किया गया है || सू० ६१ ॥ , छे. ते पूर्व दिशामा छे, सप्तर्पणुवन दृक्षिण दिशामा छ, शयश्वन-पश्चिम दिशाभां छे अने आम्रवन उत्तर दिशामा छ, ये वनषडो मायाभनी अपेक्षाये १२शा साथ ચેાજન કરતાં કંઇક વધારે છે અને વિસ્તારની અપેક્ષાએ પાંચસે ચેાજન જેટલા प्रभाणु वाणा छे. थे 'हरे हरे वनषड आडार ( दीवास ) थी परिवेष्टित " कहा, किण्होभासा, हरिया हरियो भासाकोरे चहोनेा अर्थ सोपपाति સૂત્રની પીયૂષણી ટીકામાંથી જિજ્ઞાસુઓએ જાણી गोवले. ये વના વર્ષોંથી पॄष्णु हावा महा ०४ कृष्ण अडेवाभा याव्यां छे तेमज વન ડૉ કૃષ્ણ વર્ષોવભાસન વિશિષ્ટ છે. ઓપપાતિક એ સંતુ વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે. ૫ ૦ ૬૧ ॥ જેટલા વનભાગમાં એ સૂત્રના ત્રીજા સૂત્રની ટીકામાં
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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