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________________ २२. - सुबोधिनी टीका सूर्याभस्यामलकल्पास्थिताभगवद्वन्दनादिक्रम प्रचलितवरकटऋत्रुटित केयुर मुकुटकुण्डलहारविराजमानरतिद वक्षाः पालम्बप्र. प्रलम्बमानघोलपणधरः सलम्भ्रमं त्वरितं चपलं सुरवरः सिंहासनाद् अभ्यु. त्तिष्ठति, अभ्युत्थाय पादपीठात् प्रत्यवरोहति, प्रत्यवरुह्य पाढ़ के अवमुश्चनि, अवमुच्य एकश टिकनुत्तरासद् करोति, कृत्वा सप्ताप्टपदोनि तीर्थकराभिमुखम् अनुगच्छति, अनुगम्य वानं जानु कर्पति, कृष्ष्ट्रा दक्षिणं जानु धरणितले आनन्द के मारे उछलने लगा (विकसियवर कमलणयणवयणे) विकसित श्रेष्ठ कमल के जैसे दोनोनेत्र और मुख हो गये (पयलियवर कडग तुडियके ऊरम 3 डकुंडल हारविराय माइयाछे ) इसके श्रेय कास, अटिन, केयूर, मुकुट, _कुण्डल, ये सब चंचल हो उठे, इसका वक्षःस्थल द्वार से चमकने लगा (पालंबपलंघमाण घोलंतभृसणधरे) इसका धारण किया गया लंबा लटकता हुआ कण्ठाभरण विशेष चंचल हो उठा, (ससंत्रमंतरियं चवलं) इस तरह वह सूर्याभदेव बडी उत्कंठा के साथ बहुत ही जल्दी चश्चल सा हो कर (सीहा. सणाओ अब्भुट्टहे) सिंहासन से उठा (अनुट्टित्ता पायपीढाओ) उठकर वह पादपीठ से होकर (पञ्चोहह) नीचे उनरा (पच्चोरुहिता पाउयाओ ओमुयह) नीचे उतर कर उसने अपनी दोनों खडाउंओं को उतार दिया (ओमुइत्ता) एगसाडियं उत्तरासंग करेइ) उतार कर उसने एकशाटिक उत्तरासग किया (करित्ता सत्तकृपयाई तित्थयराभिमुहं अणुगच्छद) एकशाटिक उत्नराला करके फिर वह सात आठ पैर आगे जिस दिशा की और तीर्थ कर प्रभु विराजमान जीदी 8यु, तेनु हय मानने लीय वा सायु: (विकसिय वरकमल णयण वयणे) oldal श्रेष्ठ माना i तेना नेत्र मन भुष २७ गया. (एयलियवरकडग. तुडियकेअरमउडकुडलहारविरायंतरइयवच्छे ) तेन श्रे०४ ४८४, शुटित, ४५२ મુકુટ, કુંડળ, હાર આ બધા ચંચળ થઈ ગયાં. તેનું વક્ષસ્થળ હારથી પ્રકાશવા લાગ્યું. (पालंबपलंघमाणधोलंतभूसणधरे) तेरे पडेरे सामु जानु माम२ यय थः आयु. (ससंभमं तुरियं चरल) l प्रमाणे ते सूर्यामहेव तात्र अभिसापाथी प्रेशन मेम शी यण थने (सीहासणाओ अ०भुइ) सिंडासन. ५२था adो थयो. (अक्षुट्टित्ता पायपीढायो) लायधने पापी8 S५२ थी (पचोरुइइ) नाये अती. (पचोरुहित्ता पाउयाभो ओमुयइ) नीचे उतरीन तेणे पातानी ने पागाने ता दीधी. (ओमुइना एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ) तारीने तेथे मे शाटित्तNA ध्या, (करित्ता सत्तपयाई तित्थयराभिमुहं अणुगच्छइ) यो All Sत्तीने सात। 31दातीय ४२नी सा गया,(अणुगच्छित्ता वाम . .. .
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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