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________________ सुबोधिनी टीका सू. ५७ सूर्याभविमानवनम् णाणामणिमया घंटापासा, तबणिजमईओ संखलाओ, रयया मयाओ रज्जओ ताओं णं घंटाओ ओहस्सराओ मेहस्लराओ हंसस्सराओ कोंचस्सराओ सीहस्सराओ दुंदुहिस्सराओ गंदिस्सराओ णंदियो साओ भंजुस्सराओ मंजुघोसाओ सुस्सराओ सुस्तरघोसाओ उरालेणं मणुन्नेणं मणहरेणं कण्णमणनिव्वुइकरेणं सदेणं पएसे सवओ समता आपूरेमाणाओ आपूरेमाणाओ जाव चिटुंति ॥ सू० ५७ ॥ छायातेषां खलु द्वाराणासुभयोः पार्श्व यो विधातो नैवेधियां षोडश षोडष जालकटकपरिपाटयः प्रज्ञप्ताः, ते खलु जालकटका सर्वरत्न मया अच्छाः यावन् प्रतिरूपाः । तेषां खलु द्वाराणामुभयोःपायोः द्विधातो नैषेधिक्या षोडश पोडश घण्टापरिपाटयः प्रज्ञप्ताः, तासां खलु घण्टानाम यमेतद्रूपो वर्णावासः प्रज्ञप्तः, .'तेसिं णं दाराणं उभो पासे' इत्यादि। सूत्रार्थ-(तेसिं णं दाराणं उभओ पासे दुहओ णिसोहियाए सोलस सोलम जालकड़गपरिवाडीओ पण्णत्ताओ) उन द्वारों के काम दक्षिण पाश्वभाग की नैषेधिकी में १६-१६ जालियों से युक्त ऐसे रम्य संस्थानवाले स्थानविशेषों की पंक्तियां कही गई हैं। (तेग जालाणं कडगा सम्बरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा) ये सब जाल कटक सर्वथा रत्नमय है. निर्मल हैं यावत् प्रतिरूप हैं। (नेलि ण दाराण उभभो पासे दुही निसीहियाए सोलस सोलस घंटापरिवाडीओ पण्णता) इन द्वारों के दक्षिणवा पपाचभाग में जो नषेधिकियां बैठने के स्थान है -उनमें १६-१६ घंटाश्रेणियां कही गई है। 'तेसिं णं दाराणं उभओ पासे' इत्यादि । सूत्राथ-(तेसिं ण दाराण उमओ पासे दुहओ णिसीहियाए सोलम सोलस जालकडगपरिवाडीओ पण्णत्ताओ) ते १२० माना अा भी તરફની નૈષેપિંકીમાં ૧૬–૧૬ જાળીથી યુકત એવા રમ્ય સંસ્થાનવાળા સ્થાનવિશેષની पाश्तिया छ. (तेणं जालाणं कडगा सन्चरयणोम या अच्छा जाव पडिरूवा) આ બધા જાળ કટક સંપૂર્ણ પણે રત્નમય છે, નિર્મળ છે યાવત્ પ્રતિરૂપ છે. (तेसिं णं दाराणं उभो पासे दुही निसीहियाए सोलस. सोलस घटा. परिडीओ पण्णत्ता) मा ४२वातयाना क्षाशुपामा मरे नैघिीय छ
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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