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________________ ३६० राजप्रश्नीयसूत्र तयथा-जाम्बूनदरम्यो घाटाः, वनमग्यो लालाः, नानामणिमयाः घण्टापाश्चाः, तपनीयमय्यः शबलाः, र नतमयो रजवः । ताः खलु घण्टा: ओघस्वराः, मेवस्वराः हंसस्वराः क्रौनस्वसः सिंहसराः दुन्दुभिस्वराः नन्दिम्बरा नन्दियोषाः, मजुम्बरा मजुघोपाः, अम्बराः सुस्वरचोपाः, उदारेग मनोहरेण कर्णमनो. नितिकरण शब्देन तान् प्रदेशान मर्वतः समन्तात् आपूरयमाणा आपूरय. माणाः यावत् तिष्ठन्ति ।मु० ५७ ॥ (तासिण घंटाण इमेयारूचे वण्णावासे पाते) उन घंटायों का यह इस प्रकार का वर्षावास-वर्णन-प्रकार कहा गया है। (त जहा) जैसे-(ज'. णयामईओ घटाओं, बहरामईश्रो,लालाओं णाणामणिमयाचंटापासा, तवणिजमईओ संखलाओ, स्ययामयाओ, रज्जुओ) ये घटाएँ जाम्बूनद नामके स्वर्णविशेष से बनी हुई हैं। तथा इनके भीतर जो लटकती हई लम्बी लालारा है वे वज्ररत्न की बनीहुई हैं। तथा घंटाओं के जो पार्श्वभाग है-वे अनेक जातीय मणियों के बने हए हैं। तथा जिन खलाओ पर ये चेटाएं लटक रही है-वे श्रृखलाएँ तपनीय नामक स्वर्ण विशेप की घनी हुई हैं। तथा रजतमय इनकी रस्सियां हैं। (न.ओ णं घंटाओ ओहस्सराओ मेहस्स. राओ कोचम्सराओ मीहस्सराओ, दुंदुहिस्सरायो गंदिस्सराओ) ये घंटाए प्रवाह से पक्त स्वर वाली हैं, मेघ जैसे गंभीर स्वरवाली हैं, हस. के जैसे मधुर स्वरवाली हैं. क्रोच के जैसे मधुर स्वर वालो हैं सिंहनाद जैसे तभा सण सा घटायो पातमा छ. (तासिणं घंटाण ईमेयासवे वण्णावासे पणत्ते) ते बटायानुन मा प्रमाणे छ. (तं जहा) (जंबूणयामहओ घंटाओ, वइरामईओ लालाओ, णाणामणिमया घंटापासा; तवणिजमइओ संखलाओ, स्ययामयाओ रज्जूओ) २ धा टाय नमूनहनाभना सुवर्थ વિશેની બનેલી છે. તેમજ એમની અંદરની ઘંટ વગાડવા માટેની લટતી જે વસ્તુ છે તે વારત્નની બનેલી છે. તેમજ ઘંટાઓના જે પાશ્વભાગ છે તે ઘણું જાતના મણિઓના બનેલા છે. તેમજ જે ખલાઓના આધારે એ બધી ઘટાઓ લટકી રહી છે તે ખલાઓ તપનીય સુવર્ણની બનેલી છે. એમના દેરડાઓ ચાંદીના બનેલા છે. (ताओणं घटाओ ओहरसराओ मेहस्सरामओ सस्सराओ कोचस्सराओ सीहस्सराओ, दुंदुहिस्सराओ मंदिस्सराओ) माधी घटायी प्रवाई · युत વાળી છે, મેઘ જેવા ગંભીર સ્વરવાળી છે તેમજ હસ જેવા સ્વરવાળી છે. કચન જેવા મધુર સ્વરવાળી છે, સિંહનાદ જેવા સ્વરવાળી છે, ભેરી સ્વરવાળી , ૨ રક્તના વાદ્યોને કનિ જે એકી સાથે કરવામાં આવે તેનું નામ
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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