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________________ . ...... ::. राजप्रश्नायसूत्रे निम्रधानांना दिया देवर्षि दिव्यां देवद्युति दिव्यं देवानुभावं दिव्यं द्वात्रिमाधि नारयविधिम् उपदयात. उपदर्य क्षिप्रमेव एतामाप्ति का प्रत्यर्पयतम ३७॥ टीका-ताण ने यहवे' इत्यादि-व्याख्या निगदमिद्धा ॥१० ३७ ।। गरम् --नाएगां ते वहवे देवकुमारा ये देवकुमारीओ य सूरियामेणं देवेणं एवं बुत्ता समाणा हतुद्र जाव हिययां करयल जाव पडिमुणेति, पडिसुडित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरें तेणेव उवागच्छति, उबांगच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदंति, वंदित्ता नमसित्ता जेणेव गोयमाइया समणानिग्गंथा तेणेव उवागच्छति ।सू.३८॥ छाया-नतः खलु ते बहवो देवकुमाराश्च देवकुमार्यश्च सूर्याभेन देवेन एननाः मन्तः हटतुष्ट यावद्दयाः करतल यावत् प्रतिवन्ति, पतिदिव्य देवाणु भावं. दिव्वं यत्तीसहबद्ध णविहिं उपदंसे हैं, उवदमित्ता खिप्पा मेन एयमानि पच्चपिणह) वन्दना. नमस्कार करके फिर आप लोग गौरमादि प्रमण नियों को उस दिव्य देवद्धि को, दिव्य देवद्युति को दिव्य दे दानमार को दिव्य ३२ प्रकार की नाट्यविधि को दिखलावे दिखलाकर पीछे मेरी इस प्रदत्त आज्ञा की पूर्ति हो जाने की सूचनामुझे दें।मु० ३७॥ . . स मन्त्र का टीकार्य म्पट है। म० ३७ ॥ मृत्रा--(नाग) उसके बाद (ने बडवे देवकुमारा य देवकुमारीओ नमरिया में गंदेशेण एवं बुना समामा हटत जाव हियया करयल जाव पनि तिो उन नय देवकुमारों ने एवं देवकुमारीकाओं ने जो कि भान न दिन देखि दिन्च देवजुई दिन देवाणुभाव' दिन बत्तीसइ प नि वाद से.. उपद सिचा खियामेव एयमाणनिय पञ्चप्पिणह ) - તે નમરકાર કરીને એ ગીતમ વગેરે શ્રમ નિને દિવ્ય દૃદ્ધિને - વિન, વિખ્ય દરભાવને અને દિવ્ય ૩૨ જાતની નાટય નિધિ બતાવે _ ५ पानी भने ३. ॥ १. 3७ ॥
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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