SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 283
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1-m सुबोधिनी टीका सु. ३८ सूर्याभस्य समुद्घातकरणम् २६९ graataण भगवान महावीरः तत्रैव उपागच्छन्ति, उपागत्य श्रमण 'भगवन्त' महावीर' बन्दन्ते नमस्यन्ति वन्दित्वा नमस्त्विा यव गौत दिकाः श्रमणा निर्मन्था तत्रैव उपागच्छन्ति ॥ सू० ३८ ॥ 1. टीका--तएण ते हवे देवकुमारा' इत्यादि व्याख्या निगदसिद्धा । ३८. मूलम् - तणं ते बहवे देवकुमारा देवकुमारीओ य समामेव समोसरणं करेंति, करिता समामेव पंतीओ बंधंति, बधित्ता समामेव पंतिओ नमसंति, नमसित्ता समामेव पंतिओ अवनंति, अत्रणमत्ता समा मेव उन्नमंति, उन्नमित्ता एवं सहियांमेव ओनमंति एवं सहियामेव उन्नमंति, उष्णमिता थिमियामेव ओणमति थिमियामेव उन्नमंति संगयामेव ओनमति संगयामेव उन्नमंति, उन्नमित्ता समामेव 3 - " सूर्याभदेव के द्वारा पूर्वोक्तरूप से आज्ञापित किये गये थे हष्टपुष्ट यावत् हृदयवाले होकर एवं दोनों हाथों को जोड़कर उसकी मदन्त आज्ञा को स्वीकार किया- (पडिणित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उबागच्छंति) स्वीकार करके फिर वे सबके सब जहां श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे वहां पर आये ( उवागच्छित्ता) वहां आकर के उन्होंने (समगं भगवं महावीरं वदतिनसंसंति) श्रमण भगवान् महावीर को वन्दना की, नमस्कार किया (वंदत्ता नमसित्ता जेणेव गोयमाइया संमणा निग्गंधा तेणेन उवागच्छंति) वन्दना नमस्कार करके फिर वे जहां गौतमादि श्रमण निर्ग्रन्थ थे, वहां पर आये । इस सूत्र का टीकार्थ स्पष्ट है ॥ मृ० ३८ || ધ્રુવ વડે આજ્ઞાપિત થયેલાં છે -હષ્ટ તુષ્ટ ચાવતા હૃદયવાળા થઈને અને અને હાથેાને 'लेडीने तेभनी आज्ञाने स्वीमरी (पडिणित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति) स्वीश्ररीने पछी तेथे गधा न्यां श्रभाणु भगवान विरान्मान 2 डुता त्यां गया. ( उवागच्छिता त्यांने तेथे (ममण भगव महावीर वदति, नम स ति ) श्रभाणु लगवान महावीरने वंदना तेम नमस्र કર્યો '(वदित्ता नमः सित्ता जेणेव गोयमइया समणा निग्गंधा तेणेत्र उवागच्छंति) વદના તેમજ ' નમસ્કાર કરીને પછી તેઓ જ્યાં ગૌમત વગેરે શ્રમણ નિષ્રથા હતા, ત્યાં ગયા. આ સૂત્રના ટીકા સ્પષ્ટ છે. ! સૂ ૩૮ ૫
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy