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________________ सुबोधिनी टीका सू. ३८ सूर्याभम्य समुद्घातकरणम् 6 :16 श्रुन्य यत्रैव श्रमणो भगवान महावीरः तत्रैव उपागच्छन्ति, उपागत्य श्रमण भगवन्त महावीर वन्दन्ते नमस्यन्ति, वन्दित्वा नमस्यित्वा यौव गौतम दिकाः श्रमणा निर्ग्रन्या- नशैव उपागच्छन्ति ।। सू० ३८ ॥ ' दीका--'तएणते बहवे देवकुमारा' इत्यादि-व्याख्या निगदसिद्धा इ. ३८i - मूलम्-तएणते बहवे देवकुमारा देवकुमारीओय समामेव समोसरणं करेंति, करिता समामेव पंतीओ बंधति, बधित्ता समामेव पंतिओ . नमसंति, नमंसित्ता समामेव पंतिओ अवाममंति, अवमिता समा मेव उन्नमंति, उन्नमित्ता एवं सहियामेव ओनमंति एवं सहियामेव उन्नमंति, उण्णमित्ता थिमियामेव ओणमति थिमियामेव उन्नमंति संगयामेव ओनमति संगयामेव उन्नमंति, उन्नमित्ता समामेव मां भदेव के द्वाग पूर्वोक्तरूप से आज्ञापित किये गये थे हष्टतुष्ट यावत् हृदयवाले होकर एवं दोनों हाथों को जोड़कर उसकी प्रदत्त आज्ञा को स्वीकार किया (पडिसुणित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवाग. च्छति) स्वीकार, करके फिर वे सबके सर जहां श्रमग भगवान् महावीर विराजमान थे वहां पर आये (उवागच्छित्ता) वहाँ आकर के उन्होंने (समां भगवं महावीरं वंति नति ) श्रमण भगवान महावीर को वदना की, नमस्कार किया (वंदत्ता नमंसित्ता जेणेव गोयमाझ्या समगा निग्गंथा तेणेव उवागच्छंति) वन्दना नमस्कार करके फिर वे जहां गौतमादि श्रमण निग्रन्थ थे, वहां पर आये । इम सूत्र का टीकार्थ स्पष्ट है । म०३८॥ - દેવ વડે આજ્ઞાપિત થયેલાં છે – હઝે તુષ્ટ યાવત્ હદયવાળા થઈને અને બંને હાથને डीने तेमनी आज्ञान २वीरी. (पडिसुणित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे नेणेव उवागच्छति) स्वारीने पछी तमा न्यो श्रमान वान विमान डता त्यां गया. (उवागच्छित्ता) त्यो नि तेरे (समण भगव महावीर वदति, नमसति ) श्रम लगवान भाडातीने वन तमा नभा२ च्या (वदित्ता नम सित्ता जेणेव गोयमझ्या समणा निग्गथा तेणेव उवागच्छंति) વંદના તેમજ નમસ્કાર કરીને પછી તેઓ જ્યાં ગમત વગેરે શ્રમણ નિર્ગથે હતા, ત્યાં ગયા. આ સૂત્રને ટીકા સ્પષ્ટ છે. જે સૂ૩૮ છે
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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