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________________ राजप्रश्नीय सूत्र रत्नभूपणविराजिताङ्गप्रत्यङ्गानाम् चन्द्राऽऽननानां चन्द्रार्द्धसमललाटांना चन्द्रा.धिकलौम्यदर्शनानाम् उल्कानामिव उद्योतमानानाम् शृङ्गारागार चारुवेषाणाम् हंसितभणितस्थितविलास सललित संलापनिपुणयुक्तोपचारकुशलानाम् गृहोती. जसाम् अष्टशतं नाटयसज्जानां देवकुमारिकाणां निर्गच्छति ।। सू० ३५ ॥ 'ताणंतरं च णं' इत्यादि -- टीका -- तदनन्तरम् -- अष्टोत्तरशतसंख्य देवकुमार निर्गमनानन्तरम च खलु नानामणि यावत्-पीवरम्नानामीत्यारभ्य पीवरमित्यन्तपद स वाली, समानवर्ण वाली, समान वयवाली, समानलावण्यरूप यौवनगुणों वाली, नाटक के योग्य एक से आभरणों एवं वनों को धारण करने वाली दोनों ओर कमर में अपनी २ ओदनो के छोडों को आपस में जिन्होंने बांध रखा था ऐसी, तिलक एवं मुकुटोंवाली, (पिनद्धगेवेज कंचुईण, णाणामणिरयणभूसविराइयंग मंगाणं, चंदाणणाणं. चंदसम लाडानं, चंदाहियसोमदंसणाणं उक्काण वित्र उज्जोवेमाणीण) गलेमें ग्रैवेयक एवं शरीर में चोली को धारण करनेवाली, अनेक प्रकार की मणियों से एवं रत्नों से निर्मित आभूषणों से विराजित प्रत्येक अङ्गवाली चन्द्र के जैसे मुखोंबाली, अर्धचन्द्र के जैसे ललाटों वाली, चन्द्र से भी अधिक सौम्यदर्शनावाली, उल्का के जैसे चमकनेवाली ( सिंगारागार चारुवेसाणं ) श्रृङ्गार के गृहतुल्य सुन्दर वेपवाली, ( हसियमणियचिद्वियविलास सल लिय सलाव निउणजुत्तोवयार कुसलाणं गहियाउज्जाण अपय नहसज्जाणं देवकुमारियाणं णिमाच्छई) हसित हँसने में, भणित भाषण में, स्थिति में, विलास में सललित संलाप में लीलासहितपरस्पर भाषण में, तथा पटु पुरुष योग्य रचना में, अत्यन्त कुशल, વાળી, નાટક માટે ચોગ્ય એવા આભરણા અને વસ્ત્રો ધારણ કરેલી, કમરની અને બાજુએ જેમણે પોતાતાની એ ટણીના અને છેડા બાંધી રાખ્યા હતા એવી तिस मने मुठुटोवाणी (पिनद्ध गेवेज्ज कंचुईण, णाणामणिरयणभूसणविरइयंगमंगाण, चंदाणणाण चंदद्धसमललाडाण चंदाहियसोमदंसणाण उक्का चित्र उज्जोमाणीनं) गणामा शेयर भने उपले (ज्याउन) चडेरेसी, घाणा.. જાતના મણિએ અને રત્ના જડેલી આભૂષાથી સુચાનિત સર્વ અગાવાળી, ચન્દ્રમુખી, અપચન્દ્ર જેવા લલાટોવાળી, ચન્દ્ર કરતાં પણ વધુ સૌમ્ય દર્શનવાળો, ઉલ્કાની नेम थभटवावाणी (सिंगारागार चारुवेसाण ) श्रृंगार गृहनी भ सुदर वेषवाणी ( हमिंग भणियचिडियविलाससल लियस लावनिउणजुतोत्रयारकुसलाण गहियाउज्जाणं श्रपय नदृसज्जाण देवकुमारियाण णिग्गच्छद्द) सित-हसचामा, अशित-स भाषाशुभां स्थितिमां, विद्यासभ', सससित सखायमा सीसा सहित
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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