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________________ २५६ राजप्रश्नीयसूत्रे 'तएणं से मरियाने देवे' इत्यादि.- . टीका-ततः-भूमिभागादिदाम पर्यन्त विकरणानन्तरं खलु सूर्याभो देवः . श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य आलोके-दर्शने-भगवत्समक्षमिति भावः, प्रणामं करोति, कृत्वा " अनुजानातु-अनुमोदयतु मे-मम मामित्यर्थः, भगवान् इति कृत्वा-इत्युक्त्वा सिंहासनवरगतः तीर्थकराभिमुखः संनिनपण:-समुपविष्टः। ततः-उपवेशनानन्तरम्, खलु सूर्याभो देवः तत्प्रथमतायां तस्य ना'ट्यविधेः प्रथमतायाम-आरम्भे, दक्षिण भुज प्रसारयतीति परेण सम्बन्धः, का था. तथा इन्होंने जो अयोवस्त्र धारण कर रखे थे उन के अग्रभाग फेन विनिगम से सहित आवर्त-वेष्टन से नाट्यविधि के योग्य किये गये थे और वहृत दीर्घ थे. लम्बे थे. तथा चित्रवर्ण से संपन्न थे. देदीप्यमान थे. इन सब के वक्षःस्थल कंठ में धारण की. हुई थी. एका वलीहार से सुन्दर बने हुए थे. ये सब के सब प्रचुर आभू । पहिरे हुए थे. नृत्यक्रिया में ये सब १०८ देव कुमार तत्पर बने हुए थे. इस तरह के १०८ देव कुमार उप मूर्याम देव के पसारे हुए दाहिने हाथ से निकले। ..... . .... .. टीकार्थ जब भूमिभाग, एवं दाम तक के पदार्थों की विकु र्वणा वह मूर्याभ देव कर चुका तब उसने भगवान् के समक्ष प्रणाम. किया । और ऐसा कहा कि भगवान् मेरे इस कार्य की अनुमोदना करे इस प्रकार कहकर वह उनकी तरफ अपना मुह कहके सिंहासन पर बैठ गया.. વિટનથી નાટ્યવિધિના માટે યોગ્ય કરવામાં આવ્યો હતો. બહુ જ લાંબા હો तभा त्रि विचित्र वीथी संपन्न हतो. ते सवेना पक्षोभा पा३२वी -- વલિ હારથી સુંદર બનેલા હતા. એ સેવે ખૂબ આભૂષણે પહેરેલા હતા. એ સર્વે १०८ हेवामा। नृत्य जिया तत्पर गनेस ता. मातना १०८ विमा सूर्याभवना असारेखा म डायमांथीनीन्या. કરી ટીકાર્થ-જ્યારે તે સૂર્યાભ દેવે ભૂમિભાગથી માંડીને દામ સુધીના બધા પદા-', -योनी विशु Neीधी त्यारे तेरे .. - मावानने प्रणाम ४या .अने 20 प्रमाणे - વિનંતી કરતાં કહ્યું કે હે ભગવાન મારા આ કામનીઆ૫ અનુમોદના કરે એવી રીતે વિનંતી કરીને તે તેઓશ્રીની તરફ મુખ રાખીને સિંહાસન ઉપર બેસી ગયે બેડા પછી તે સૂર્યાભદેવે નાટ્યવિધિના આરંભમાં પિતાની જમણી ભુજાને ફેલાની તેની આ ભુજ ઘણું જાતના ચંદ્રકાંત વગેરે મળીઓથી, સુવર્ષોથી તેમજ 17 .
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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