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________________ મુખ્ય सुबोधिनी टीका. सू. ३४ सूर्याभस्य समुद्घातकरणम् गानां द्विघातः संचलिताप्रन्यस्तानाम्, श्रविद्धतिलकाऽऽमेलानां पिनद्ध ग्रैवेयक चुकानाम् उत्पीडित चित्रपपरिकर सफेनकाऽऽवर्तरचितसंगत पलम्यवत्यान्त चित्रदेदीप्यमाननिवसनानाम् एकाव लिकण्ठरचितशोभमानवक्षः पूर्व भूपणानाम् अष्टशतं नाट्यसज्जानां देवकुमाराणां निर्गच्छति ॥ मृ० ३४ ॥ रूवजोवणगुणोववेयाणं एगाभरणवसणगहियणिज्जोयाणं दुहओ संवलियग्गणित्थाण ) इस उसके दक्षिण हाथ से १०८ एक मौ आठ देवकुमार निकले, ये सब के सब देवकुमार समान आकार वाले थे, समान वर्ण से युक्त चमडी वाले थे. समान उमर वाले थे. समान लावण्य, रूप एवं जैसे आभरणों को एव वस्त्रों को यौन रूप देनों से थे. युक्त एक पहिरे हुए थे इन्होंने जो उत्तरीय वस्त्र ( दुपट्टा ) धारण कर रखा था, उसके दोनों छोड़ इनकी कटि के दोनों ओर बंधे हुए थे ( आविद्धतिलयामेलाण. पिणद्धगेविज्जकंचुयाणं उप्पीलिय चित्तपट्टपरियरस फेणगावत्तर गावलिकंठरइयसोभतइयसंगय, पलंबवत्थंनचित्तचिल्ललगनियंसणाण, वच्छपरिहृत्यभूसणाणं असय मज्जाणं देवकुमाराणं णिगच्छ) इनके ललाट पर तिलक और मस्तक पर मुकुट बंधा हुआ था. गले में इन्होंने ग्रैवेयक - (गले का आभूषण) और शरीर की रक्षा के निमित्त अङ्गरक्षक वस्त्र चोगा- (पैरों तक लटकता हुआ ढोला अंगा) पहिर रखा था. कमर जो विचित्र वर्णवाले व में इनकी कटिबधन -- वमरबन्ध था. संनजोवणगुणोववेयाणं गाभरणवसण गहिय णिज्जोयाणं दुहओ लियग्गणित्थाण) तेना ते मला हाथभांथी १०८ मे से साठ देव भाशनीકન્યા. એ સર્વ દેવકુમારેા સરખા આકાર વાળા હતા. સમાન વર્ણવાળા ચામડીી ચુકત હતા. સરખી ઉંમર વાળા હતા. સમાન લાવણ્ય, રૂપ અને યૌવન રૂપ ગુણોથી ચુકત હતા. તેમણે જે ઉત્તરીય વસ્ત્ર ધારણ કરેલુ હતુ. તેના અને છેડાએ તેમની उभरनी ण'ने तरई मांघेला हता. (आविद्धतिलया मेलाणं पिणद्धगेविज्जकंचुयाण पलंबवत्थंतचित्तचिल्ललगउप्पी लियचित्तपट्टपरियरसफेगगाव तरहयसंगय, नियंसंणाणं, एगाव लिकंठरइयसोभंतवच्छ परिहत्थभूसणाण अड्ड ઉપર તિલક અને सयौं सज्जाण' देवकुमाराणं णिग्गच्छ) तेभना लाटा भस्तङ 'Gचर 'भुङ्कुट मांषैसा हुता, गणांभां तेभणे अवेय ( गजानु' घरेलु ) गते શરીરની રક્ષાના માટે અને અંગરક્ષક વસ્ત્ર (અંગરખું) પહેરેલુ હતુ. કમરમાં તેમણે કેંટિબધન (કમર ખધ) કે જે વિચિત્ર વર્ણવાળા વસ્ત્રનું હતું—તેમજ તેઓએ જે અધા વસ્ત્ર ધારણ કરેલુ હતુ—તેમના અગ્રભાગ ફ્રેન વિનિંગૠમ સહિત આવત્ત
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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