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________________ १७६ राजप्रश्नीयसूत्रे नानामणिमयानि पाशीर्षकाणि, जाम्बूनदमयानि गात्राणि, वज्रमयाः सन्धयः नानामणिमयं विच्च मध्यसागं । तत् खलु सिंहासनम् ईहामृगपभतुरगनरमकरविहगव्यालझकिन्नरकाशरभचनकुञ्जरवनलतापमलताभक्तिचित्र थी. तथा ऊँचाई में चार योजन की थी. यह पूरी की पूरी मणियों से बनी हई थी. आकाश एवं स्फटिकमणि के जैली यह स्वच्छ थी. लक्षण यावत् प्रतिरूप थी. इसके बाद इस मणिपिठिका के ऊपर (पग सीहासणं विउघड) उसने एक विशाल सिंहासन की विकुणा की (तम्न णं सीहासणस्स इमे यारूवे वणावासे विउचइ) उस सिंहासन का वर्णावाम-वर्णनपद्धति इस प्रकार से कहा गया है । (तवणिजमयाचकला) सिंहामन के जो चकलचक्रल थे-अर्थात् सिंहासन के पाये जो नीचे के गोल आकार वाले अवयव विशेष थे. वे स्वर्ण के बने हुए थे. (स्ययामया सीहा) इस पर जो सिंहों को प्रतिकृति थी वह चांदी की बनी हुई थी (सोपणिया पाया) सिंहासन के जो पाये थे वे सुवर्णनिर्मित थे. (णोणामणिमया पायसीसगाई) नानामणियों के बने हुए पादशीर्षक थे. (जब्णयमयाई गत्ताई) इसके पार्श्वगत अवयव विशिष्ट सुवर्णमय थे (वइरामया संधी) सन्धानस्थान वज्र के बने हुए थे (णाणामणिमये विच्चे) इसका मध्य भाग अनेक मणियों से युक्त था. (सेणं सीहासणे ईहामिय उसमतुरगनरमगरविहरावालगकिन्नरसरूसरभचमरकुंजर वणलयपउमलयभत्तिचित्तं) यह सिंहामन इहामृग, वृषभ, अश्व, मनुष्य, मकर મણિઓથી બનેલી હતી આકાશ તેમજ ટિક મણિના જેવી તે સ્વચ્છ હતી, લક્ષણ ती यावत् प्रति३५ उता. त्या२ पछी ते मणि पानी ५२ ( एग सीहासणं विउघड) तेगे ये वि सिहासननी विए। ४. (तस्सणं सीतामणस्स इमेयारूवे वण्णावाले विउघड) ते सिंहासनना वाणुन २ प्रमाणे छ. (नवणिज्जमया चक्कला) सिंहासनाना र यदी-यो मेटले सिंहासनना पाया र नाय गाण मा१२ पास अवयव विशेष ता ते सोनाना पनेसा ता (स्ययामया सीहा) તેની ઉપર જે સિંહોની પ્રતિકૃતિ (કોતરેલી આકૃતિ) હતી તે ચાંદીની બનેલી હતી. (सोवर्णिया पोया) सिंहासनना पाया ता ते सोनाना पनेसा ता. (णाणामणि मयाई पाय सीसगाई) मने माणुमाथी नेता ५सूचाना पाहशीष (41 भूवातुं मासन विशेष) उता, (जंबू णयमयाई गत्ताइ) तेनी पायवाणा २५वयव विशेष सोनाना उता. (वइरामयासंधी) सन्धान स्थान-सधी मार-डीशयाना मनेसा (ता. (णाणा मणिमयेविच्चे) तेन मध्य मा म ने मणियोथी युत ता. सेणं सीहासणे इहामिय उसम तुरग नर मकर विहग वालग किन्नर रुरु सरभ
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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