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________________ ६७१ प्रमैयबोधिनी गेका पद २१ २० ४ वैफ्रियशरीरभेदनिरूपणम् वैक्रियशरीरम्, यदि संख्येयवर्षायुष्क कर्मभूमिगगर्भव्युक्रान्तिकमनुष्यमश्चेन्द्रियवैक्रियशरीरम्, किं पर्याप्तक संख्येयवर्षायुष्ककर्मभूमिगमनुष्यपञ्चन्द्रियवैशियशरीरम्, अपर्याप्तकसंख्येयवर्षायुष्ककर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्यएश्चन्द्रियवैक्रियशरीरम् ? गौतम ! पर्याप्तकसंख्येय वर्षा युष्कर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्यपञ्चन्द्रियक्रियशरोम्, नो अपर्याप्तकसंख्येयवर्षायुष्ककर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्यपञ्चन्द्रियवैक्रियशरीरम, यदि देव पञ्चेन्द्रियवैक्रियशरीरम्, मनुष्य पंचेन्द्रिय का वैक्रिय शरीर होता है (नो असंखेजबासाउय कम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणूस पंचिंदियवेउव्वियसरीरे) असंख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रिय का वैक्रियशरीर नहीं होता (जई संखेजवासाउयकम्लभूमगगम्भवक्कंतियमणूलपचिंदियवेउव्वियसरीरे) यदि संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य पचेन्द्रिय का वैक्रिय शरीर होता है (किं पज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्पभूषगगम्भवतियमणूसपंचिंदियवेउब्वियसरीरे, अपज्जत्तगसंखे०) क्या पर्याप्त संख्यात वर्ष का आयुवाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रिय का वैक्रियशरीर होता है अथवा अपर्याप्त का? ___ (गोयमा ! पज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणूसपंचिं. दियवेउव्वियसरीरे) हे गौतम ! पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रिय का वैक्रियशरीर होता है (नो अपज्जत्तगसंखेज्जवासा उयकम्मभूमगगम्भवक्कंतिथमणूसपंचिदियवेउब्वियसरीरे) अपर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रिय का वैक्रिय शरीर नहीं होता (जइ देवपंचिंदियवेउब्बियसरीरे) यदि देव पंचेन्द्रियों का वैक्रियशरीर होता ५येन्द्रियन। वैठियशरीर डाय छ (नो असंखेज्जवासाउय कम्मभूमग गम्भवति मणस पंचिंदिय वेउव्विसरीरे) असभ्यात नी आयुवाणा भूमि म मनुष्य पथन्द्रि. યના વક્રિયશરીર હતાં નથી. (जइ संखेज्जवासाउय कम्मभूमग गम्भवकंतिय मणूस पंचिंदिय वेउव्वियसरीरे) यहि સંખ્યાતવર્ષની આયુષ્યવાળા કર્મભૂમિ જ મનુષ્ય પંચેન્દ્રિયના વક્રિયશરીર હોય છે (किं पज्जत्तग संखेज्जवासाउय कम्मभूमग गम्भवतिय मणूस पंचिंदिय वेउव्वियसरीरे, अपज्जत्तग संखेज्जवासाउय कम्मभूमग गम्भवक्कं ति मणूस पंचिंदिय वेउब्वियसरीरे) शु पात સંખ્યાતવર્ષની આયવાળા કર્મભૂમિજ ગર્ભજ મનુષ્ય પંચેન્દ્રિયના ક્રિયશરી હોય છે, અથવા અપર્યાપ્તના ? (गोयमा ! पज्जत्तग संखेज्जवासाउय कम्मभूमग गम्भवक्कं तिय मणूस पाचदिय वेउब्वियसरीरे) गौतम । यात सध्यातवर्ष नी मायुवा ४म भूमि म भनुष्य पये. न्द्रियना वैठियशश२ डाय छ (नो अपज्जत्तग संखे नवासाउय कम्मभूमग गम्भव कतिय मणूस पंचिंदिय वेतस्विर सरीरे) २५ सयातर्षनी २' यु०४। म म मनुष्य પ ચેદ્રિયના વયિશરીર નથી હોતાં
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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