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________________ ५४२ प्रेज्ञापनासूत्र खलु भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! एकाकारः प्रज्ञप्तः, शब्दपरिणामः खलु भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-सुरभिशब्दपरिणामश्च, दुरभिशब्दपरिणामश्च१०, स एपोऽजीवपरिणामश्च । परिणामपदं समाप्तम् ।।सू० ३॥ टीका-अथाजीवपरिणामं प्ररूपयितुमाह-'अजीवपरिणामे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! अजीवपरिणामः खलु कतिविधः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह-'गोयमा!' के गौतम ! 'दसविहे पण्णत्ते' अजीवपरिणाम स्तावद दशविधः प्रज्ञप्तः, 'तं जहा-बंधणका कहा है (तं जहा) वह इस प्रकार (कनखडफालपरिणाये य जाव लुक्खफालपरिणामे य) कर्कशस्पर्शरूप परिणाम यावत् रूक्षस्पर्शरूप परिणाम (अगुरुलहुय परिणामे गंभंते ! कइविहे पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! अगुरुलघु परिणाम कितने प्रकार का कहा है ? (गोयसा! एगागारे पण्णत्ते) हे गौतम ! एकाकार कहा है (सहपरिणामे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! शब्द परिणाम कितने प्रकार का कहा है ? (गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते) हे गौतम ! दो प्रकार का कहा है (तं जहा) वह इस प्रकार (सुभिसद्दपरिणामे य दुभिसद्दपरिणामे य) शुभ शब्द परिणाम और अशुभ शब्द परिणाम (से तं अजीवपरिणामे य) यह अजीव परिणाम भी हुआ परिणाम पद समाप्त टीकार्थ-अब अजीव के परिणाम की प्ररूपणा की जाती है: गौतमस्वामी प्रश्न करते हैं-हे भगवन् ! अजीव का परिणाम कितने प्रकार का कहा गया है? भगवान उत्तर देते हैं-हे गौत्तम ! अजीव का परिणाम दश प्रकार का कहा जहा) ते 21 प्रहारे (कक्खडफासपरिणामे य जाव लुक्खफासपरिणामे य) ४४० २५श ३५ પરિણામ યાવત્ રૂક્ષ સ્પર્શ રૂપ પરિણામ (अगुरुलहुय परिणामेण भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?) 3 अगवन् ! अशु३ सधु परिणाम हैटसा प्रारना ४या छ ? (गोयमा ! एगागारे पण्णत्ते) , गौतम ! १४२ छ (सहपरिणामेणं भंते ! कइविहे' पण्णत्त ?) 8 लगवन् ! श५४ परिणाम है। प्रारना ४ह्या छ ? (गोयमा! दुविहे पप्णत्ते) हे गौतम । मे' ५४२ना ४ा छ (तं जहा) ते २॥ प्रारे (सुभिसद्दपरिणामे य दुन्भिसद्दपरिणामे य) शुम श५४ परिणाम अने पशुम श४' परियाम (सेत्तं अजीवपरिणामे य) मा भर्नु परिणाम पू थयु "परिणाम यह समास . ટીકર્થ-હવે અજીવના પરિણામની પ્રરૂપણ કરાય છે–શ્રી ગૌતમસ્વામીને પ્રશ્ન કરે છે કે હે ભગવન્ ! આ અજીવ પરિણામ કેટલા પ્રકારના કહ્યાં છે ?
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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