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________________ ५३९ प्रमेयबोधिनी टीका पद १३ सू० ३ अजीवपरिणामनिरूपणम् परिणामः ५, गन्धपरिणामः ६, रसपरिणामः ७, स्पर्शपरिणामः ८, अगुरुलघुकपरिणाम:९, शब्दपरिणामः १० । वन्धपरिणामः खलु मदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! द्विविध: प्रज्ञप्तः, तद्यथा-स्निग्धवन्धनपरिणामः, म्क्षवन्धनपरिणामश्च, समस्निग्धतायां बन्धो न भवति, समरूक्षतायामपि न भवति । विमात्रस्निग्यरूक्षत्वेन बन्धस्तु स्कन्धानाम् ॥१॥ स्निग्धस्य स्निग्धेन याद्यविकेन, रूक्षस्य रूक्षेण द्वयाद्यविकेन । स्निग्धस्य रूक्षेणोपैति धन्धो जघन्यवों विपमः समो वा ॥ २ ॥?, गतिपरिणामः खलु भदन्त ! कतिविधः णाम (रसपरिणामे) रसपरिणाम (फासपरिणामे) स्पर्शपरिणाम (अगुरुलहुपरिणामे) अगुरुलघुपरिणाम (सद्दपरिणामे) शब्दपरिणाम " (बंधपरिणामे णं भंते ! कइबिहे पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! बंधपरिणाम कितने प्रकार का कहा है ? (गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते) हे गौतम ! बंधपरिणाम दो प्रकार का कहा है (तं जहा) वह इस प्रकार (णिबंधणपरिणामे) स्निग्ध बंधन परिणाम (लुक्खवंधणपरिणामे य) और रुक्ष बन्धन परिणाम (समणियाए बंधो न होइ) समान स्निग्धता होने के कारण बंध नहीं होता (समलुक्खयाए विण होइ) समान गुण रूक्षता के होने पर भी बंध नहीं होता (वेमायणिद्ध लुक्खत्तणेण) विपम मात्रा वाले स्निग्ध और रूक्षत्व होने पर (बंधो उ खंधाणं) स्कंधों का वन्ध होता है ' (णिद्धस्स गिद्धेण दुयाहिएणं) दो गुण अधिक स्निग्ध के साथ स्निग्ध का (लुख्खस्स लुक्खेग दुयाहिएणं) दो गुण अधिक रूक्ष के साथ वक्ष का (णिद्धस्म लुक्खेण उवेइ बंधो) स्निग्ध का रूक्ष के साथ बंध होता है (जहण्णवज्जो) जघन्य गुण को छोडकर (विसमो समो वा) विषम अथवा सम (गंधपरिणामे) परिणाम (रसपरिणामे) २सपरिणाम (फासपरिणामे) २५ परिणाम (अगुरुलघुपरिणामे) भY३सधुपरियाम (सद्दपरिणामे) २७४५रिणाम (वंधारिणामेणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते) हे मान्य परिणाम 2। प्रा२ना ४i छ ? (गोयमा ! दविहे पण्णत्ते) गौतम ! ये ४२ ४ii छ (तं जहा) ते 240 रे (णिद्धबंधणपरिणामे) स्नि अन्धन परिणाम (लुक्खबंधणपरिणामेय) भने ३६ मन्यन परिणाम (समणिद्धयाए बंधो न होइ) समान नियता पाना ४२णे म नथी खाता (समलुक्खयाए वि ण होड) समानशुर ३क्षताना पाथी प] ध नथी जाते। (वेमायणिद्धलुक्खत्तणेणं)-विषम भात्रीवा नियव मने ३२५ पायी (बंधोउ खंधाणं) २४न्धान मन्डाय छ (गिद्धस्स णि ण दुयाहिएणं) मे गुएर मधि४ स्निग्यना साथे निधन। (लुक्खस्स लुक्खेण दुयाहिएणं) मे गुY मधि४ ३६नी 'साथे ३३ना (णिद्धस्स लुक्खेण उवेइ वंधो) निधना ३६नी साथे . ५५. थाय छे (जहण्णवज्जो) धन्य मुगुने छीनु (विसमो समो वा) વિષમ અથવા સમ
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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