SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 493
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १२ सू० ६ प्रतरपूरणवक्तव्यनिरूपणम् - ४८३ 'वेउब्धिया आहारगा य वद्धलगा णत्थि' द्वीन्द्रियाणां चैक्रियाणि आहारकाणि च वद्धानि शरीराणि न सन्ति, 'मुक्केल्लगा जहा ओहिया ओरालियमुक्केल्लगा' मुक्तानि वैक्रियाणि द्वीन्द्रियाणामाहारकाणि च यथा औधिकानि-समुच्चयविषयकाणि औदारिकमुक्तानि प्रतिपादितानि तथैव प्रतिपत्तव्यानि, 'तेया कम्मगा जहा एएसिं चेव ओहिया ओरालिया' तेजस कार्मणानि द्वीन्द्रियाणां शरीराणि यथा एतेपाञ्चव-द्वीन्द्रियाणामौधिकानि-सामान्यानि औदारिकाणि शरीराणि प्रतिपादितानि तथव प्रतिपत्तव्यानि, ‘एवं जाव चउरिंदिया' एवम्दीन्द्रियाणा मित्र यावत्-त्रीन्द्रियाणां चतुरिन्द्रियाणाञ्चापि औदारिकवैक्रियाहारकतैजसकार्मणशरीरेषु यथायोग्यं वद्धानि मुक्तानि चावसेयानि 'पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं एवं चेव' पञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकानां वद्धानि मुक्तानि चौदारिकशरीराणि, एवञ्चैव-प्रागुक्त द्वीन्द्रियवदेव वोध्यानि, किन्तु-‘णवरं वेउन्धियसरीरएसु इमो विसेसो'-नवरम्-द्वीन्द्रियापेक्षयां वैक्रियशरीरेषु अयं वक्ष्यमाणो विशेषो वोध्यः, 'पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवइया वेउव्यियसरीरया पण्णता?' हे भदन्त ! पञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकानां कियन्ति वैक्रियशरीराणि शरीर हैं, उनकी प्ररूपणा समुच्चय मुक्त औदारिक शरीरों के समान समझना चाहिए । होन्द्रिय जीवों के बाद वैक्रिय शरीर और आहारक शरीर नहीं होते हैं। मुक्त क्रिय और आहारक उसी प्रकार समझना चाहिए जैसे समुच्चय मुक्त औदारिक शरीर कहे हैं। द्वीन्द्रियों के तैजस और कार्मण शरीर इन्हीं के औदारिक शरीरों के समान जानना चाहिए। हीन्द्रियों के समान ही त्रीन्द्रियों और चतुरिन्द्रियों के भी औदारिक, वैक्रियक, आहारक, तेजस और कार्मण शरीरों के बद्ध और मुक्त जान लेने चाहिए । पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के बद्ध और मुक्त औदारिक शरीर द्वीन्द्रियों के समान ही लमझना चाहिए, मगर हीन्द्रियों की अपेक्षा वैक्रिय शरीरों के विषय में यह विशेषता है-'हे भगवन् ! पंचेन्द्रियतियच जीवों के वैक्रिय शरीर कितने होते हैं ?' भगवान् इसका उत्तर देते हैं-हे गौतम ! पंचेन्द्रिय तिर्यचों જેના બદ્ધ અને વૈકિય શરીર અને આહારક શરીર નથી હોતાં. મુક્ત ક્રિય અને આહારક એ પ્રકારે સમજવા જોઈએ. જેવાં સમુચ્ચય મુક્ત ઔદારિક શરીર કહ્યાં છે. દ્વિીન્દ્રિયેના તૈજસ અને કાર્ય શરીર ઔદારિક શરીરના સમાન જાણવા જોઈએ. ઢીદ્ધિના સમાન જ ત્રીન્દ્રિ અને ચતુરિન્દ્રિના પણ દારિક, વૈક્રિયક, તેજસ અને કાશ્મણ શરીર બદ્ધ અને મુક્ત જાણી લેવા જોઈએ. પચેન્દ્રિય તિર્યંચના બદ્ધ અને મુક્ત ઔદારિક શરીર ઢીદ્ધિના સમાન જ સમજવાં જોઈએ. પણ ઢીદ્ધિની અપેક્ષાએ વેકિય શરીરના વિષયમાં એ વિશેષતા છે–ભગવદ્ ! પંચેન્દ્રિય જીના વક્રિય શરીર કેટલા હોય છે? શ્રી ભગવાન એને ઉત્તર આપે છે-હે ગૌતમ! પચેન્દ્રિય તિર્યાના વક્રિય શરીર
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy