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________________ प्रगापनासूत्र संज्ञोपयुक्ताः संख्येयगुणाः, मैथुनसंज्ञोपयुक्ताः संख्येयगुणाः, देवाः खलु भदन्त ! किम् आहारसंज्ञोपयुक्ताः, यावर परिग्रहसंज्ञोपयुक्ताः ? गौतम ! उत्सन्न कारणं प्रतीत्य परिग्रहसंज्ञोपयुक्ता संततिभावं प्रतीत्य आहारसंज्ञोपयुक्ता अपि पावत् परिग्रहसंज्ञोपयुक्ता अपि, एतेषां खलु मदन्त ! देवानाम् आहारसंज्ञोपयुक्तानाम् यावत् परिग्रहसंज्ञोपयुक्तानाञ्च कतरे में उपयोग वाले होते हैं (आहारसन्नोव उत्ता लंखिजगुणा) आहारसंज्ञा में उपयोग वाले संख्यातगुणा है (परिग्गहसन्नोवउत्ता संखिज्जगुणा) परिग्रहसंज्ञा में उपयोग वाले संख्यातगुणा हैं (मेहुणसन्नोवउत्ता संखिज्जगुणा) मैथुनसंज्ञा में उपयोग वाले संख्यातगुणा है। (देवाणं भले ! किं) हे भगवन् ! क्या देव (आहारसन्नोवउत्ता जाव परिग्गहसन्नो उत्ता ?) आहारसंज्ञा में उपयोग वाले होते हैं अथवा परिग्रहसंज्ञा में उपयोग वाले होते हैं ? (गोयला ! ओसन्न कारणं पहुंच) हे गौतम ! बहुलता से वास कारण की अपेक्षा (परिमहलन्लोवउत्ता) परिग्रहलंज्ञा में उपयोग चाले होते हैं । (संततिभावं पड्डच्च) आन्तरिक अनुनय की अपेक्षा से (आहारसनोवउत्ता चिजाद परिग्गहसन्नोवउत्ता थि) आहार संज्ञा में उपयुक्त अथवा परिमहलंज्ञा में भी उपयुक्त होते हैं। (एएसिणं भले! देवाणं आहारसन्नोवउत्ताणं जाव परिग्गहसन्नोव उत्ताण थ) हे भगवन् ! इन जाहारसंज्ञा में उपयोग वाले अथवा परिग्रहसंज्ञा में उपयोग वाले देवों में से (कचरे कयरहितो) कौन किस से (अप्पा वा, बहुया वा, (गोयमा!) गौतम ! (सम्वत्थोषा मणूसा) च्याथी माछा मनुष्य (भयसन्नोवउत्ता) मय संज्ञामा उपयोगाय छे (आहारसन्नोरउत्ता स खिज्ज गुणा) मा १२ संज्ञामा उपयो14 सध्यान गए। छ (परिग्गहसन्नोवउत्ता स खिज्जगुणा) परियड सशामा उपयोगवाणा सभ्यात गए छे (मेहुणसन्नोवउत्ता स खिज्जगुणा) मथुन सशाम 6५ये1વાળા સ ખ્યાત ગણું છે (देवाणं भंते । किं ) 3 भगवन् ! शु हेर (आहारसन्नोवत्ता जाव परिग्गहसन्नोव उत्त ?) अ २ से शाम! 6421 थाय छे यावत् परियड से शमा उपयोग पाणा थार छ? (गोयमा ! ओसन्न कारण पडुच्च) गौतम ! महुयताथी मारएनीअपेक्षाये (परिमगहतन्नोवउत्ता वि) परिव संशामा ५योगवा थाय छे (स ततिभावं पडुच्च) सान्तरित भनुम 1नी अपेक्षा से (आहारसन्नोवउत्ता वि जाव परिगहसन्नोवत्ता वि) आहार સંસામાં ઉપયુક્ત યાત્ પરિગ્રહ સજ્ઞામાં પણ ઉપયુક્ત થાય છે (एएसिण भते । देवाण आहारसन्नोवउत्ताण जाव परिग्गहसन्तोवउत्ताण य) मगवन् ! આ આહાર સત્તામાં ઉપયોગવાળા યાવત્ પરિગ્રહ સ જ્ઞામા ઉપગ વાળા દેવામાંથી (कयरे कयरेहिंतो) योनायी (अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा) २६५,
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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