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________________ प्रमेयवोधिती टीका पद ८ सू. १ संज्ञापदनिरूपणम् कतरेभ्योऽल्पा वा बहुका वा, तुल्या वा विशेषाधिका वा भवन्ति ? गौतम ! सर्वस्तोकाः देवाः आहारसंज्ञोपयुक्ताः भयसंज्ञोपयुक्ताः संख्येयगुणाः, मैथुनसंज्ञोपयुक्ताः संख्येयगुणाः, परिग्रहसंज्ञोपयुक्ताः संख्येयगुणाः ॥ सू० ॥१॥ ॥ इति प्रज्ञापनायां भगवत्याम् अष्टमं संज्ञापदं समाप्तम् ॥ टीका-सप्तमे पदे प्राणिनामुच्छ्वासनिःश्वास पर्याप्तिनामकर्मयोगाश्रय क्रियाया विरहाविरहकालः प्रतिपादितः, अथाष्टमे पदे वेदनीयमोहनीयोदयाश्रयान् ज्ञालावरणदर्शनावरणक्षयोपशमाश्रयांश्चात्मपरिणामविशेषान् अधिकृय संज्ञां प्ररूपयितुमाह-'फडणं भंते ! सन्ना ओ पणत्ताओ ? गौतमः पृच्छति-हे अदन्त ! कति खलु संज्ञाः प्रज्ञशाः ? भगवान आहतुल्ला वा, विसेसाहियां वा ?) अल्प, बहुत. तुल्य या विशेषाधिक है (गोयमा!) हे गौतम ! (सम्वत्थोवा देवा) सब से कल देव (आहार मनोवउन्ता) आहारसंज्ञा के उपयोग वाले हैं (भयसन्नोवउत्ता संखिज्जगुणा) भयतंज्ञा में उपयोग वाले संख्यातगुणा है (मेहुणसन्लोवत्ता संखेज्जगुणा) पैथुनलंज्ञा में उपयोगवाले संख्यातगुणा है (परिग्गाहसनोवउत्ता संखिज्जगुणा) परिग्रहसंज्ञा में उपयोग वाले संख्यातगुणा हैं। इति पण्णवणाए भगवइए अट्ठमं सन्नापदं समन्तं (भगवती प्रज्ञापना में आठवां संज्ञापद समाप्त) टीकार्थ-सातवें पद में उच्छ्वासनिश्वास पर्याप्ति नामकर्ष के उदय से होने वाली प्राणियों की श्वासोच्छ्वास क्रिया का प्ररूपण किया गया है, अब आठवें पद में वेदनीय एवं मोहनीय कर्म के उदय से होने वाले तथा ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम की अपेक्षा रखने वाले आत्मपरिणामों को लेकर संज्ञा की प्ररूपणा करते हैंઘણા, તુલ્ય અગર વિશેષાધિક છે? (गोयमा ) 3 गौतम । (सव्वत्थोवा देवा) माथी छ। हेवे। (अ'हारसन्नोवउत्ता) माडा२ सज्ञान उपयोगवा छे (भयसन्नोवउत्ता सखिज्ज गुणा) मय सेनामा उपयोगा। सभ्यात गए। छे (मेहुण सन्नोवउत्ता संखेज्जगुणा) भथुन सनामा ५योगवाणा सभ्यात गया छ (परिग्गहसन्नोवउत्ता स खिज्जगुणा) पश्यि सशामi S५योजना सध्यात गए छ इति पण्णवणाए भगवईए अट्ठमं सन्नापयं समत्तं ભગવતી પ્રજ્ઞાપનામાં આઠમું સંજ્ઞા પદ સમાસ ટીકાથ– સાતમાં પદમાં ઉચ્છવાસ-નિશ્વાસ પર્યાપ્તિ નામ કર્મના ઉદયથી થનાર પ્રાણિના શ્વાસે છૂવાસ ક્રિયાનું પ્રરૂપણ કરાયું છે, હવે આ આઠમાં પદમા વેદનીય તેમજ મેહનીય કર્મના ઉદયથી થનાર તથા જ્ઞાનાવરણીય તેમજ દર્શનાવરણીય કર્મના ક્ષપશમની અપેક્ષા રાખનાર આત્મપરિણામેને લઈને સંજ્ઞાની પ્રરૂપણા કરે છે,
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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