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________________ १२४ प्रधापनासूत्र च, स्यात् चरमौ च अचरमश्च, नो चरमाणि च अदरमाणि च, स्यात् चरनश्च अवक्तव्यश्च, शेपा भङ्गाः प्रतिषेद्धव्याः, चतुष्पदेशिकः खलु भदन्त ! स्कन्धः पृच्छा, गौतम ! चतुष्पदे शिकः शल स्कन्धः स्यात् चरमः १ नो अचरमः २ स्याद् अवक्तव्यः ३ नो चरमाणि, ४ चो अचरमाणि ५ नो अबक्तव्यानि ६ नो चरमश्च अचरमश्च ७ नो चरमञ्च अचरमाणि च ८ स्यात् चरमौ च अचरमश्च ९ स्यात् चरमौ च अचरमौ च १० स्यात् चरमश्च अवक्तव्यश्च ११ स्यात् चरमश्च अवक्तव्यौ च १२ नो चरमाणि च अवतव्यश्च १६ नो चरमाणि च अवक्तव्यानि (सिय चरमाई च अवरसेय) कथंचित् घरमाणि और अचरम है (लो चरमाई च अचरमाई च) चरमाणि और अधरमाणि नहीं है (खिय चरने व अक्त्तव्यए य) कथंचित् चरम और अबक्तव्य है (लेखा भंगा एडिलेहेयन्का) शेष भंगों का निषेध करना चाहिए। ___ (चउप्पएसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा ?) हे भगवन् ! चौपदेशी स्कंध के विषय में पृच्छा ? (गोयमा ! चउपएलिए णं खंधे) हे गौतम ! चौपदेशी स्कंध (सिय चरमे) कथंचित् चरम है, (१) (नो अदरले) अचरम नहीं है, (२) (लिय अवत्तवए) कथंचित् अवक्तव्य है (३) (लो चरमाई) घरमाणि नहीं है, (४) (नो अचरमाइ) अचरमाणि नहीं है, (५) (नो अवसब्बयाई) अवक्तव्यानि नहीं है, (६) (नो चरमे य अचरमेय) चरम और अचरम नहीं है, (७) (नो चरमे य अचरमाइं च) चरम और अचरमाणि नहीं है, (८) (सिथ चरमाई अचरिमे य) कथंचित् चरमाणि और अचरम है, (९) (लिय चरम्बाई च अचरमाई च) कथंचित् चरमाणि और अचरमाणि है, (१०) (तिय चरने य अक्त्तव्दए य) कथंxतव्यानि नथी (नो चरमे य अचरमेय) घरभ भयरभ नथी (नो चरमेय अचरमाणि) यरम भयरमाल नथी (सिय चरमाइं च अचरमेय) 3थयित्यमानि गनेयरम छ, (नो चरमाइ च अचरमाइंच) यरमा भने मयमा नथी (सिय चरसे य अवत्तव्बए य) ४थयित् यम मन अवतव्य छ (सेसा भंगा पडिसेहेयब्बा) शेष लगानी निषेध ४२व नये. (चउपएसिए णं भंते ! खंघे पुच्छा ? उ लगवन् । यो प्रदेशी २४न्धन विषयना छ। (गोयमा चउप्पएसिए ण खंथे) गौतम ! यो प्रदेशी २४५ (सिय चरमे) ४थ यित् छ ? (नो अचरमे) अ५२म नबी २ (सिय अवत्तवर। यथित अ५४तव्य छ, 3 (नो चरमाई) यभार नथी, ४ (नो अचरमाइं) मन्यरभाणि नथी, ५ (नो अवत्तव्बयाई) अवकव्यानि नथी, ६ (नो चरमेय नो अचरमेय) य२म भने अन्य२५ नयी ७ (नो चरमे य अचर. माई च) २२म भने अन्यभागि नयी, ८ (सिय चरमाइं अचरिमेय) ४यथित् २२माणि भने अयम छ, ८ (सिय चरमाइ च अचरमाइं च) थयित २२माणि मन भयरमाणि छ, १० (सिय चरमे य अवत्तव्यए य) ४थथित् २२म अने मतव्य छ, ११ (सिय घरमे च अवत्तव्वयाई च) धयित् अम अने २भवतव्यानि छ, १२ (नो चरमाइं च
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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