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________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद १० सू० ५ द्विप्रदेशादिस्कॅन्धस्य चरमाचरमत्वनिरूपणम् १२५ च १४ नो अचरमश्च अवक्तव्यश्च १५ नो अचरमश्च अवक्तव्यानि च १६ नो अचरमाणि च अवक्तव्यश्च १७ नो अचरमाणि च अवक्तव्यानि च १८ नो चरमाश्च अचरमञ्च १९ नो चरमश्च अचरमश्च अवक्तव्यानि च २० नो चरमश्च अचरमाणि च अवक्तव्यश्च २१ नो चरमश्च अचरमाणि च अवक्तव्यानि २२ स्यात् चरमो च अचरमश्च अवक्तव्यश्च २३ शेपाः भङ्गाः प्रतिपेद्धयाः, पञ्चप्रदेशिकः खलु भदन्त ! स्कन्धः पृच्छा, गोतम ! पञ्चप्रदेशिकः स्कन्धः स्यात चरमः १ नो अचरमः २ स्यात् अवक्तव्यः ३ नो चरमाणि ४ नो अचरमाणि ५ नो अवक्तचित् चरम और अवक्तव्य है (११) (सिय चरमेय अवत्तव्बयाई च) कथंचित चरम और अवक्तव्यानि है, (१२) (नो चरमाइ च अवत्तए य) चरमणि और अवक्तव्य नहीं है (१३) (नो चरलाई च अवत्तव्वयाइं च) चरमाणि और अवक्तव्यानि नहीं है, (१४) (नो अचरमेय अवत्तवए य) अचरम और अवक्तव्य नहीं है, (१५) (नो अचरमे य अवत्तव्वयाई च) अचरम और अवक्तव्यानि नहीं है, (१६) (नो अचरमाई च अवत्तव्यए य) अचरमाणि और अवक्तव्य नहीं है, (१७) (नो अचरिमाइं च अवत्तव्ययाई च) अचरमाणि और अवक्तव्यानि नहीं है, (१८) (नो चरमे य, अचरमे य, अवत्तव्यए य) चरम, अचरम और अवक्तव्य नहीं है, (१९) (नो चरमे अचरमे अवत्तवयाई च) चरम, अचरम और अवक्तव्यानि नहीं है, (२०) (लो चरमे य अचरमाइं च अवत्तव्यए य) चरम, अचरमाणि और अवक्तव्य नहीं है, (२१) (नो घरसे य अचरमा च अवत्तव्ययाई च) चरम, अचरमाणि और अवक्तव्यानि नहीं है, (२२) (सिय चरमाइं च अचरिमे य अवत्तव्यए य) कथंचित् चरमाणि अचरम और अवक्तव्य है, (२३) (सेसा भंगा पडिसेहेयव्वा) शेष भंगों का निषेध करना चाहिए । (पंचपएलिए णं भंते ! खंधे पुच्छा ?) अगवन् ! पंचप्रदेशी स्कंध के विषय अवत्तव्वए य) य२मा भने अवतव्य नथी, १3 (नो चरमाई च अवत्तव्बयाई च) २२भाला म २५वतव्यानि नथी जाता, १४ (नो अचरमे य अवत्तव्वए य) २५ य२म भने मवतव्य नथी, १५ (नो अचरमेय अवक्तव्बयाई च) मयरम मने मतव्यानि नथी, १६ (नो अचरमाइं च अवत्तव्यए य) भयरभागि भने अवतव्य नथी, १७ (नो अचरमाइं च अवत्तव्वयाई च) मयरमा भने मतव्यानि नथी, १८ (नो चरमेय, अचरमेय, अवत्तव्यए य) यम, अयरम मन अवतव्य नथी. १८ (नो चरमे अचरमे, अवत्तव्बयाई च) २२भ, मने अन्य२५ म. सवतव्यानि नथी, २० (नो चरमेय अचरमाइं च अवत्तव्वएय) २२५ २मयरम मने मतव्य नथी, २१ (नो चरमेय अचरमाइं च अवत्तब्वयाइ च) ५२म, भयरमा भने मतव्यानि नथी, २२ (सिय चरमाइं च अचरिमेय अव। तव्वए य) थायित् ५२मा, मयरम भने भक्तव्य छ, २३ (सेसा भंगा पडिसे हेयब्वा) शेष निषेध ४२३ ल.
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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