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प्रमैयबोधिनी टीका पद १० सू० ५ द्विप्रदेशादिस्कन्धस्य चस्माचरमत्वनिरूपणम् १२३ दस इकारस वारस तेरसमो। तेवीस चउव्वीसो पणवीसइमो य पंचमए ॥३॥ विचउत्थ पंच छर्टी पन्नरस सोलं च सत्तरट्रारं । वीसकवीस वावीसगं च वजेज छ मि ॥४॥ विचउत्थ पंच छद्रं पण्णर सोलं च सत्तरटारं । बाबीसइम विहूणा सत्तपएसंमि खंधम्मि ॥ ५॥ विचउत्थ पंच छटुं पण्णर सोलं च सत्तरद्वारं । एए वज्जिय भंगा सेसा सेसेसु खंधेसु ॥ सू० ५॥ ___ छाया-द्विप्रदेशिकः खलु भदन्त ! स्कन्धः पृच्छा, गौतम ! द्विप्रदेशिकः स्कन्धः स्यात् चरमः, नो अचरमः, स्यादवक्तव्यः, शेपा भगाः प्रतिषेद्धव्याः, त्रिप्रदेशिकः खलु भदन्त ! स्कन्धः पृच्छा, गौतम ! त्रिप्रदेशिकः स्कन्धः स्यात् चरमः, नो अचरमः, स्यादवक्तव्यः, नो चरमाणि, नो अचरमाणि नो अवक्तव्यानि, नो चरमश्च अचरमश्च, नो चरमश्च अचरमाणि
द्विप्रदेशी आदि की चरमाचरमता शब्दार्थ-(दुप्पएसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा ?) हे भगवन् ! द्विप्रदेशी स्कंध के विषय में पृच्छा ? (गोयमा !) हे गौतम ! (दुप्पएसिए खंधे) द्विप्रदेशी स्कंध (सिय चरमे) कथंचित् चरम है (नो अचरिमे) अचरम नहीं है (सिय अवत्तव्यए) कथंचितू अवक्तव्य है (सेसा भंगा पडिसेहेयवा) शेष भंगों का निषेध करना चाहिए।
(तिपएसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा ?) हे भगवन् ! त्रिप्रदेशी स्कंध के विषय में पृच्छा ? (गोयमा !तिपएसिए खंधे) हे गौतम ! त्रिप्रदेशी स्कंध (सिय चरमे) कथंचित् चरम है (नो अचरमे) अचरम नहीं है (सिय अवत्तव्वए) कथंचित् अवक्तव्य है (नो चरमाइं) चरमाणि-बहुत चरमरूप-नहीं है (नो अचरमाइं) अचरमाणि नहीं है (नो अवत्तव्वयाई) अवक्तव्यानि नहीं है (नो चरसे य अचरमे य) चरम-अचरम नहीं है (नो चरमेय अचरमाणि) चरम-अचरमाणि नहीं है।
દ્વિ પ્રદેશી આદિની ચરમાં ચરમતા शहाथ-(टुप्पएसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा ?) 8 मावान् ! विदेशी २४ धना विषयमा २७ ? (गोयमा ) 3 गौतम ! (दुप्पएसिए खंधे) द्विशी २४.५ (सिय चरमे) ४थयित् २२म छ (नो अचरिमे) भरभ छ नहि (सिय अवत्तव्वए) ४थायित् अवतव्य छ (सेसा भंगा पडिसेहेयव्वा) शेष लगानी निषेध ४२वे। नये
(तिपएसिएणं भंते । खंधे पुच्छा १) लगवन् । विदेशी २४न्धन विषयमा छ? (गोयमा! तिपएसिए खंघे) गौतम! विदेशी २४.५ (सिय चरमे) ४थयित यरभ छ (नो अचरिमे) भन्यरभ नथी (सिय अवत्तव्वए) ४थयितु भवतव्य छ (नो चरमाइं) ३२. भा-या य२५ ३५-ॐ नाड (नो अचरमाई) २मयमा नथी (नो अवत्तव्वयाई) मq.