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________________ ८६८ जीवामिगमसूत्र मुदकं यस्यासौ नन्दीश्वरोदः इति वोद्धव्या, किं समचक्रवालसंस्थानसंस्थितः विषमचक्रवालसंस्थानसंस्थितो वा ? हे गौतम ! नन्दीश्वरवरोदो नाम समुद्रः समचक्रवालसंस्थानेनैव संस्थितः नतु-विषमचक्रवालसंस्थानेन-इत्यादि सर्वाऽपि वक्तव्यता क्षोदोदसमुद्रवद्वक्तव्या-विस्तारभयानपुनलिंख्ये पाठकैरनु सन्ध्येया। 'अट्ठो जो खोदोदगस्स जाव' अर्थों यः क्षोदोदकसमुद्रस्य यावत् हे गौतम ! मन्दीश्वरोदः नामाभिधाने हेतुमुद्भाव्योत्तरं क्षोदोदप्रकरणवदेव ज्ञातव्यम् । नवरमत्र 'सुमणससोमणभदा एत्थ दो देवा महड्रिया जाव परिवसंति' सुमनससौमनसभद्रौ द्वौ देवौ महद्धिकावत्र यावत्पल्योपमस्थितिको परिवसतः इत्यादि कर लेना चाहिये तथा च-हे भदन्त ! नन्दीश्वर समुद्र क्या समचक्रवाल संस्थान वाला है ? या विषमचक्रवाल वाला है ? हे गौतम ! यह नन्दीश्वरसमुद्र समचक्रवाल संस्थान वाला है विषमचक्रवाल संस्थान वाला नहीं है इत्यादिरूप से समस्त वक्तव्यता यहां क्षोदोद इक्षुसमुद्र कीतरह कहना चाहिये उसे हम यहां विस्तार हो जाने के भय से. नहीं लिख रहे हैं । यही बात 'अट्ठो जो खोदोदगस्स' इस सूत्र द्वारा पुष्ट की गई है क्षीदोदक समुद्र के प्रकरण में जिस प्रकार के नाम के होने के सम्बन्ध में प्रश्न एवं उत्तर कहे गये हैं उसी तरह से वे सब यहां पर भी कह लेना चाहिये परन्तु उस प्रकरण की अपेक्षा इस प्रकरण में केवल यही विशेषता है कि यहां पर 'सुमणस सोमणस भद्दा एत्थ दो देवा महिडिया जाव परिवति' सुमनस और सोमनस भद्र नामके दो देव रहते हैं ये देव महद्धिक आदि विशेषणों તે તે પ્રમાણે વર્ણન કરી લેવું. તે આ પ્રમાણે છે ભગવદ્ આ નંદીશ્વર સમુદ્ર શું સમચકવાલ સંસ્થાન વાળે છે? કે વિષમ ચક્રવાલ સંસ્થાન વાળે છે? હે ગૌતમ! આ નંદીશ્વર સમુદ્ર સમચક્રવાલ સંસ્થાન વાળે છે. વિષમ ચક વાલ સંસ્થાના વાળ નથી. વિગેરે પ્રકારથી સઘળું કથન અહીયાં હૈદેદ–ઈશુ સમુદ્રના કથન પ્રમાણે કથન કરી લેવું જોઈએ અહિયાં વિસ્તાર વધી જવાના लयथी री ४९स नथी. मेरी बात 'अद्रो जो खोदोदगस्स' २॥ सूत्र वा। પુષ્ટ કરવામાં આવેલ છે. ઈક્ષરસ સમુદ્રના પ્રકરણમાં જે પ્રમાણેના નામ હાવાના સંબંધમાં પ્રશ્ન અને ઉત્તર કહેવામાં આવેલ છે. એ જ પ્રમાણે એ સઘળા નામે અહીયાં પણ કહી લેવા. પરંતુ એ પ્રકરણ કરતાં આ પ્રકરણમાં કેવળ मेरी विशेषता छ , मडीया 'सुमणस सोमणस भदा एत्थ दो देवा महिड्ढिया - जाव परिवसंति' सुमनस मन सौमनस स स नामनामे । २९ छे. मा
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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