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________________ प्रमैयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ तू.९१ देवद्वीपादिगतचन्द्रसूर्ययोः निरूपणम् ६५१ य पोग्गला य उदगत्ताए बक्कमंति विउक्कमंति-चयंति-उवचयंति' गौतम ! वह उदकयोनयो जीवाः पुद्गलाश्च वाह्य समुद्रे उदकतया जलाकारेणापक्रामन्तिगच्छन्ति व्युत्क्रामन्ति-समुत्पद्यन्ते एके गच्छन्ति - अपरे समुत्पद्यन्ते तथाचीयन्ते चयमुपगच्छन्ति उपचीयन्ते-उपचयमायान्ति एतच्च पुद्गलान् प्रतिद्रष्टव्यम् पुद्गलानामेव चयोपचयार्थ प्रसिद्धेरिति । 'से तेणटेणं एवं बुच्चइ बाहिरगा समुद्दा पुण्णा पुण्ण जाव समभरघडताए चिट्ठति' तत्-तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते बाह्याः समुद्राः पूर्णाः पूर्णप्रमाणाः वोलट्टमाणाः वोसट्टमाणा समभरघटतया तिष्ठन्ति इति ॥सू० ९१॥ 'गोयमा ! बाहिरएसु णंसमुद्देसु बहवे उद्गजोणिया जीवा य पोग्गला य उदगताए वक्कमंति, विउकमंति, चयंति, उवचरंति, से तेणटेणं एवं वुच्चइ बाहिरगा समुद्दा पुण्णा जाँव समभरघडताए चिट्ठति' हे गौतम ! बाहर के समुद्रों में अनेक उदक योनिक जीव और पुद्गल मेघ वृष्टि के विना वहां जाते हैं और कितनेक वहां उत्पन्न होते रहते है अर्थात् कितनेक जलकायिक जीव वहां जाते हैं और कितनेक जलकोयिक वहां उत्पन्न होते हैं तथा कितनेक पुद्गलों का वहां चय और उपचय होता है। सूत्र में जो 'अपक्रान्ति, व्युत्क्रामन्ति' ऐसा कहा गया है वह जलकायिक जीवों की अपेक्षा से कहा गया है और 'चयंति उपचयंति' ऐसा जो कहा गया है वह पुद्गलों की अपेक्षा लेकर कहा गया है, क्योंकि उनमें चय और अपचय होता है । इसी कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है कि बाहर के समुद्र जल से भरे हुए हैं यावत् वे जल से परिपूर्ण घट के समान हैं ॥९॥ छ ?-'गोयमा वाहिरएसु णं समुद्देसु वहवे उद्गजोणिया जीवा य पोग्गलाय उदगताए बक्कमति विउक्कमति चयति उवचयति से तेणठेणं एवं वुच्चइ बाहिरगा समुद्दा पुण्णा जाव समभरघडताए चिट्ठति' गौतम ! गडारना समतोमा અનેક ઉદક યુનિક છે અને પુદ્ગલે મેઘ વૃષ્ટિવિના ત્યાં જાય છે. અને કેટલાક ત્યાં ઉત્પન્ન થતા રહે છે. અર્થાત્ કેટલાક જલકાયિક જીવે ત્યાં જાય છે. અને કેટલાક જલકાયિકે ત્યાં ઉત્પન્ન થાય છે. તથા કેટલાક પગલેને त्यां यय थाय छे. मन ययय थाय छे. सूत्रमा २ 'अपक्रामन्ति, व्युत्क्रामन्ति' से प्रमाणे वामां आवेस छ. a r४ि वानी मपेक्षाथी 8. पामां मा छे. सन 'चयंति उपचयंति' से प्रभारी ने डस छे ते पहनी અપેક્ષાને લઈને કહેવામાં આવેલ છે. કેમકે તેમાંજ ચય અને ઉપચય થાય છે. એ જ કારણથી હે ગૌતમ! મેં એવું કહેલ છે. કે–બહારના સમુદ્રો પાણીથી ભરેલા છે. યાવત્ પાણીથી પૂરેપૂરા ભરેલા ઘડા જેવા છે. છે . ૯૧
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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