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________________ प्रमेयोति का टीका प्र.३ उ.३ पू. ९० धान की रण्डे सूचिन्द्र गोत्रर्णनम् ६२ तथैव सर्व पूर्ववत् । 'एवं पुरखरवरगाणं चंदाणं पुरक्खरवरस्स दीवस्स पुरस्थिमिल्लाओ वेदियंताओ पुक्खग्समुदं वारसजोयणसहस्साई ओगाहित्ता चंद दीवा' कुत्र खलु भदन्त ! पुष्करवरद्वीपगतचन्द्राणां पुष्करवरद्वीपा नाम द्वीपाः प्रज्ञप्ताः, भगवानाह-हे गौतम ! पुष्करवरगतानां चन्द्राणाम् पुष्करवरद्वीपपौरस्त्यवेदिकान्तात्, पुष्करोदसमुद्रस्तं द्वादशयोजनसहस्राण्यवगाह्याऽत्र चन्द्रद्वीपां नाम द्वीपाः वक्तव्याः, 'अण्णम्मि पुक्खरवरे दीवे रायहाणीओ तहेव' राजधान्याः स्वकीयद्वीपानां पश्चिमदिशि तिर्यगसंख्येयद्वीपसमुद्रान् व्यतिव्रज्याऽन्यपुष्करवरद्वीपे तथैव द्वादशयोजनसहस्राण्यवगाद्य० सर्व पूर्ववज्ज्ञातव्यम् । 'एवं सूराण वि दीवा पुक्खरवरदीवस्स पञ्चत्थिमिल्लाओ वेइयंताओ पुक्खरोदं समुई वारसजोयणसहस्साई ओगाहित्ता तहेव सव्वं जाव रायहाणीओ दीविल्लगाणं दीवे समुहगाणं समुद्दे चेव एगाण अम्भितरपासे एगाणं वाहिरपासे रायहाणीओ रवरस्स दीवस्स पुरथिमिल्लाओ वेदियंताओ पुक्खरवरसमुदं बारसजोयणसहस्साई ओगाहित्ता चंददीवा' इसी तरह से जब गौतम ने प्रभु से पूछा-हे भदन्त ! पुष्करवर द्वीपगत चन्द्रों के पुष्करवरद्वीप नामके द्वीप कहां पर हैं ? तब प्रभु ने गौतम से ऐसा कहा-हे गौतम ! पुष्करवरढीप के पौरस्त्य वेदिकान्त पुष्करवर समुद्र में बारह हजार योजन आगे जाने पर चन्द्रदीप हैं । 'अण्णंमि पुक्खरवरे दीवे रायहाणीओ तहेव' तथा अन्य पुष्कर वरद्वीप में उनकी राजधानियां हैं। इन राजधानियों के होने के सम्बन्ध में पहिले जैसा ही कथन कर लेना चाहिये ‘एवं सराणं वि दीचा पुग्वरवरदीवस्स पच्चस्थिमिल्लाओ वेदियंताओ पुक्खरोदं समुई वारसजोयणसहस्साई ओगाहित्ता तहेव सव्वं जाय रायहाणीओ दिविल्लगाणं दीवे समुगाणं पुखरवरसमुदं वारसजोयणसहम्साइं ओगाहित्ता चंददीवा' से प्रभारी न्यारे ગૌતમસ્વામીએ પ્રભુશ્રીએ એવું પૂછયું કે-હે ભગવન્ પુકવર દ્વીપમાં આવેલ ચંદ્રને પુષ્કરવર દ્વીપ નામને દ્વીપ કયાં આવેલ છે ? ત્યારે પ્રભશ્રી એ તેના ઉત્તરમાં ગૌતમસ્વામીને કહ્યું કે હે ગૌતમ! પુષ્કરવર દ્વીપના પૌરત્ય વેદિકાનથી પુષ્કરવર સમુદ્રમાં બાર હજાર યોજન આગળ જવાથી ચંદ્ર द्वीप मावस छे. 'अण्णंमि पुक्खवरवरे दीवे रायहाणीओ तहेव' तथा अन्य પુષ્કર દ્વીપમાં તેની રાજધાની છે. આ રાજધાની હેવાના સંબંધમાં पाडसाना ४थन प्रमाणेनु ४थन ४ दे. 'एवं सूराण वि दिवा पुक्खरवरदीवास पच्चस्थिमिल्लाओ वेदियंताओ पुक्खरोदं समुदं बारस जोयणसहस्साई ओगाहिता तहेव सव्वं जाव रायहाणीओ दिविल्लगाणं दीवे समुद्दगाणं समुद्दे चेव एगाण
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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