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________________ प्रमेययोतिका टीका प्र. ३ उ. ३ सु.८६ वेलंधरनागराजस्वरूप निरूपणम् ५६३ , चोर्ध्वमुच्चैस्त्वेन तदेव प्रमाणम् । अर्द्धानि द्वापष्टैः सक्रोशानि एकत्रिंशद् योज - नानि आयामविष्कम्भाभ्याम् वर्णकः प्रासादवर्णनमुल्लोचवर्णनं च प्राग्वत् । 'से केण णं भंते ! एवं वच्च गोधूमे आवासपव्वर - गोयमा ! गोधूमेणं आवासपव्त्रए तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं बहुओ खुड्डा खुड्डीयाओ जाव गोथूभवण्णाई बहूई उप्पलाई तहेव जाव गोधूमे तत्थ देवे महड्डिए जाव पलिओ महिईए परिवसइ' तत्कनार्थेन खलु भदन्त ! एवमुच्यते गोस्तूप आवासपर्वतः भगवानाह - गौतम ! गोम्पाssवासपर्वते वन्यः क्षुल्ला क्षुल्लिका वाप्यो यावद्विलपङ्क्तयस्तत्र-वहूत्पल-कुमुद - पद्म - कमल पुण्डरीफ - महापुण्डरीक शतसहस्रपत्राणि सन्ति तानि तानि सर्वाणि गोस्तूपाऽऽमाऽऽकारवर्णानि तत्तद्योगापर्वतोऽपि गोस्तूपः इति कथ्यते अनादिकाल प्रवृत्तव्यवहारतोनाऽन्योऽन्याश्रयवाला है यावत् यह सपरिवार सिंहासन सहित है 'से केणट्टेणं मंते ! एवं बुच्चइ गोथूभे आवास पव्वए' हे भदन्त ! इस पर्वत का नाम 'गोस्तूप आवास पर्वत' ऐसा किस कारण से कहा गया है ? इस के उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा ! गोथूमेणं आवासपव्चए तत्थ २ देसे तर्हि २ बहुओ खुट्टा खुड्डियाओ जाव गोधूम वण्णाई बहूई उप्पलाई तब जाब गोधूमे तत्थ देवे महड्डिए जाब पलिओ महिइए परिवस' हे गौतम ! गोस्तूप आवास पर्वत पर स्थान २ पर बहुत बडी वापिकाएं हैं यावत् गोस्तूप के वर्ण जैसे उत्पल हैं कुमुद हैं पद्म हैं कमल हैं पुण्डरीक हैं महापुण्डरीक हैं और एक लक्ष पत्तों वाले कमल हैं इस प्रकार से यह सब कथन यहां पूर्वोक्त जैसा ही कह लेना चाहिये यावत् यहां गोस्तूप नामका देव रहता है यह देव महर्द्धिक ચેાજનની લખાઈ પહેાળાઇ વાળું છે. યાવત્ તે સપરિવાર સિંહાસનથી યુકત छे. 'से केणट्टेणं भंते ! एवं बुच्चइ गोथूभे आवासपव्वए' हे लगवन् ! આ પર્યંતનુ નામ ગેાસ્કૂલ આવાસ પત એ પ્રમાણે શા કારણથી કહેવામાં आवेस छे ? या प्रश्नना उत्तरमां अनुश्री हे छे -गोयमा ! गोथूभेणं आवास पव्वए तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं बहुओ खुड्डा खुड्डियाओ जाव गोथूभवण्णाई बहुईं उप्पलाई तहेव जाव गोथूभे तत्थ देवे महढिए जाव पलिओम ट्ठिइए परिवसई' हे गौतम! गोस्तूप आवास पर्वत पर स्थणे स्थळे ઘણી નાની માટી વાવેા છે. ચાવત્ ગેાસ્તૂપના વર્ણન પ્રમાણેના ઉત્પલે છે. भुट्टो छे, पो छे. उभा छे. पुंडरी। छे भने महायुउरी छे भने એક લાખ પાત્રાવાળા મળેા છે. આ રીતે આ બધુ કથન પહેલાના વર્ણન પ્રમાણે જ છે. ચાવત્ અહીયાં ગૈાસ્તંભ નામના દેવ રહે છે. આ દેવ મહુ
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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