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________________ जीवाभिगमसूत्र दोपः । एवमत्र गोस्तूप नामा भुजगेन्द्रो भुजगराजो महद्धिको महाद्युतिको महावलो महानुभावो महासौख्यः पल्योपमस्थितिमान् परिवराति, 'से णं तत्थ चउण्डं सामाणियसाहस्सीणं जाव गोधूमस्स आवासपव्ययस्स गोधभाए रायहाणीए जाव विहरइ' स गोस्तूप भुजगराजस्तत्र चतुःसामानिक साहस्री चतससपरिवारा महिपी तिस्पर्पत्सप्तानीकाऽनीकाधिपति पोडशात्मकरक्षकदेव सहस्राणां तद्राजधान्याश्चाऽन्यद्वास्तव्यदेवदेव्यादीनां यावदधिपत्यादि कुर्वाणो विहरति तत्तत्स्वामिकत्वाद्गोस्तूपावासो नाम भवति । 'से तेणढे णं जाव णिच्चे' तत्तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते गोस्तूपो नामाऽऽवास पर्वत इति । आदि विशेषणों वाला है और एक पल्योपम की इसकी स्थिति है इस कारण इस पर्वत का नाम 'गोस्तुप' ऐसा कहा गया है अथवा 'गौस्तुभ' ऐसा जो इस पर्वत का नाम है वह अनादि कालिक है इससे यह व्यवहार पराश्रित नहीं है 'से णं तत्थ सामाणिय साहस्सीणं जाव गोथूभस्स आवासपवयस्स गोधूभाए रायहाणीए जाव विहरंति' यह गोस्तूप नामका नागराज नागेन्द्र चार हजार सामानिक देवों का चार सपरिवार अग्रमहिषियों का, तीन परिपदाओं का, सात अनीकों का, सात अनीकाधिपतियों का १६ हजार आत्मरक्षक देवों का गोस्तूप पर्वत का, गोस्तुप राजधानी का और इस राजधानी में रहने वाले दूसरे और अनेक देवों का एवं देवियों का आधिपत्य करता हुआ यावत् सुख से रहता है। अतः गोस्तूप नामक देव का • इसमें अधिकार होने से इस पर्वत का नाम गोस्तूप पर्वत ऐसा हुआ है • 'से तेणटूठे णं जाव णिच्चे' यही घात इस पर्वत के इस नाम करण દિક વિગેરે વિશેષણ વાળા છે. અને તેમની સ્થિતિ એક પપમની છે. તે કારણથી આ પર્વતનું નામ ગેસૂપ એ પ્રમાણે કહેવામાં આવેલ છે; અથવા ગેડૂ એવું જે આ પર્વતનું નામ છે તે અનાદિ કાલિક છે. તેથી આ व्यवहा२ ५२श्रित नथी. 'से णं तत्थ चठण्डं सामाणियसाहस्सीणं जीव गो)भस्स आवासपव्वयस्स गोथूभाए रायहाणीए जाव विहरंति' मा स्तूम नामना નાગરાજેન્દ્ર ચાર હજાર સામાનિક દેવેનું સપરિવાર ચાર અગ્રમહિષિનું ત્રણ પરિષદાઓનું સાત અનીકેનું સાત અનીકાધિપતિનું ૧૬ સોળ હજાર આત્મરક્ષક દેવેનું નેતૃભ પર્વતનું નેતૃભ રાજધાનીનું અને એ રાજધાનીમાં રહેવાવાળા અન્ય અનેક દેવનું અને દેવિયેનું અધિપતિપણું કરતા થકા સુખપૂર્વક રહે છે. ગોસ્તંભ નામના દેવને તેમાં અધિકાર હોવાથી. આ પર્વતનું નામ ગોસ્વપ पति से प्रभारी थये छे. 'से तेणटेणं जाव णिच्चे मेकर पाता तनु
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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