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________________ प्रमेययोतिका टोका प्र.३ उ.३ सू.८३ लवणसमुद्रे जलवृद्धिहासनिरूपणम् ५३३ छाया–पञ्चनवति सहस्राणि अवगाह्य चतुर्दिक्षु लवणम् । चत्वारोऽलिंजरसंस्थानसंस्थिता भवंति पातालाः ॥१॥ तन्नामानि निर्दिशति 'तं जहा-वलयामुहे केउए जूवे ईसरे' तद्यथा-(पूर्वादि दिक्षु क्रमशः) वडवामुखः केयूपः यूपः ईश्वरः (कलश:) 'तेणं महापायाला एगमेगं जोयणसयसहस्सं उव्वेहेणं' ते खलु चत्वारोऽपि महापातालकलशाः एकैकं योजनशतसहस्रमुद्वेधेन "मूले दश योजन सहस्साई विक्खंभेणं' मूले दशयोजनसहस्राणि विष्कम्भात्-दैर्येण 'मज्झे एगपएसियाए सेढीए एगमेगं जोयणसयसहस्सं विक्खंभेणं' मध्ये-तत ऊर्ध्वमेकप्रादेशिवया श्रेण्या विष्कम्मतः प्रवर्धमानाः प्रवर्धमाना मध्ये एकैकं योजनशतसहस्रं विष्कम्भेण तत अर्ध्व भूयोऽपि एकप्रादेशिक्या श्रेण्या विष्कम्भतो हीयमानाः २ 'उपरि मुहमूले दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं' उपरि मूखमूले दशयोजनसहस्राणि विष्कम्भेण । तदु. तम्-'जोयणसहस्स दसगं मूले उवरिं च होति विच्छिण्णा । मज्झे य सयसहस्सं तत्तियमेत्तं च ओगाहा ॥१॥ छाया-योजनसहस्र दशकं मूले उपरि च ___ 'तं जहा' इनके नाम इस प्रकार से हैं-'वलयाहे, केउए, जूवे, ईसरे' वलयामुख, केयूप, यूप और ईश्वर 'तेणं महापायाला एगमेगं जोयणसयसहस्सं उब्वेहेणं' ये पाताल कलश एक लाख योजन जल में नीचे प्रविष्ट हुए हैं 'मूले दस जोयणसहस्लाइं विक्खंभेणं' मूल में ये १० हजार योजन के चौडे हैं 'मज्झे एगपएसिया सेढीए एगमेगं जोयण सयसहस्सं विक्खंभेणं' वहां से एक एक प्रदेश की एक एक श्रेणिसे वृद्धि होते हैं ये मध्य में एक एक लाख योजन चौडे हो गये हैं। 'उवरि मुहमूले दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं' फिर वहां से एक २ प्रदेश की श्रेणि से हानि होते होते ये ऊपर में १० हजार योजन के चौडे हो गये हैं। अन्यत्र भी ऐसा ही कहा है 'तं जहा' ते नाभा मा प्रमाणे छ.-'वलयामुहे, केउए, जूए ईसरे' पसायामुभ, यू५ यूप, भने ४श्वर 'तेणं महापायाला एगमेगं जोयणसयसहस्सं उव्वेहेणं' मा पातास सी साथ यौन पाणीना म२ 61 प्रदेशमा छे. 'मूले दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं' भूम मे इस हुनर यादा पाहा छ. 'मज्झे एगपएसियाए सेढीए एगमेगं जोयणसयसहस्सं विक्खंभेणं' त्यांथी ये मे प्रशनी श्रेणीथी वृद्धि थdi यता से मध्यम से स म य पडाणा य गयेस छे. 'उवरि मुहमूले दस जोयणसहसास्साई विक्खंभेणं' ते पछी त्यांथी ४ मे प्रहशनी શ્રેણીથી હાની થતાં થતાં તે ઉપરની તરફ ૧૦ દસ હજાર એજન પહોળા થઈ यह छ. मीर ५३२ मन छ.-'जोयणस इस्स दस मूले उवरिंच
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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