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________________ जीवाभिगमसूत्रे नाऽन्तराऽवगाहनेन 'सेया वरकनगथूभियागा जाय वणमालाउत्ति' श्वेतानि घरकनकस्तूपिकाकानि ईहामृगऋषमतुरगनरमकरविहगव्यालकिनररुरुसरभचमर कुञ्जरवनलता पद्मलता भक्तिचित्राणि स्तम्भगतववेदिकायुक्तानि अतोऽमिरामागि विद्याधरयमल युगल यन्त्र युकानिवाचिः साबमा ठनीयानि रूपक सहस्त्रकलितानि दीप्यमानानि देदीप्यमानानि चक्षुलोंकितलेशानि शुभस्पर्शानि यावत्प्रतिरूपाणि इत्यादि क्रमेण द्वाराणां वर्णन विजयद्वारवत् । 'तस्सणं भवणस्स' तस्य खलु भवनस्य 'अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नत्ते'-अन्तर्मध्ये बहुसमरमणीयोऽतिरस्यो भूमिभागः कथितः । 'से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा' स यथानामकः आलिङ्गपुष्करमिति या, 'जाव मणीणं वण्णो' यावन्मणीनां धनुष चौडे हैं 'तावतियं चेव पवेसेणं' तथा २५० धनुष ही ये प्रवेश वाले हैं। 'सेया वरकनकथूनियागा जाव वणमालाउति' ये द्वार सफेद हैं और इनकी शिखरे श्रेष्ठ सुवर्ण की बनी हुई हैं। इन द्वारों के वर्णन में 'ईहागऋषभतुरगनरमकरविहगव्यालकिन्नररुरु आदि पाठ से लेकर यावत् वनमाला तक का पाठ ग्रहण किया गया है । अतः यह वर्णन विजय द्वार के वर्णन जैसा समझना चाहिये इन द्वारों के वर्णन में जो यहां इहाग आदि पाठ लिया है उसका अर्थ स्पष्ट है क्योंकि इन पदों की व्याख्या पीछे विजयद्वार के वर्णन में की जा झुकी है 'तस्स णं भवणस्स अंलो बहसलरमणिज्जे भूमिभागे पण्णते' इस भवन के भीतर का भूमिभाग बहुत ही अधिक सुन्दर है 'से जहानालए आलिंगखरे इना' जैसे मृदङ्ग का मुख चिकना होता है 'जाव मणीणं वणाओ' इस तरह 'आलिङ्ग पुरखरेइवा' इस सूत्र पाठ से २५० २ढीस धनुपनी पडा । पापा छे. 'तावतिय चेव पवेसेणं' तथा २५० मढिसो धनुषना प्रवेश पाण छ. 'सेया वर कनक भूमियागा जाव वणमाल उत्ति' से रवान्यो स३६ छे. मने तेना शिप श्रेष्ठ सोनाना अनेसा छे. न्य दाराना १ नमा 'ईहामृगपभनुरगनरमकरविहगव्यालकिनर रूरू' विगेरे પાઠથી લઈને યાવનું વનમાળા સુધીને પાઠ અહિંયા ગ્રહણ થયેલ છે. તેથી આ વર્ણન વિજ્ય દ્વારના વર્ણન પ્રમાણે સમજી લેવું. આ પ્રકારના પણ વર્ણનમાં અહીંયા જે ઈહામૃગ વિગેરે પાઠ લખે છે તેને અર્થ સ્પષ્ટ છે. કેમકે આ બધાજ પદની વ્યાખ્યા વિજય દ્વારના વર્ણનમાં આવી ગયેલ છે. 'तस्सणं अत्रणस्स अंतो वहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते' मा भवननी मरने। भूमिमा धो धारे सुर छ. 'से जहानामए आलिंगपुक्खरेइवा' भ भृगना भुपमा यि हाय छे. तेवर ४ि! छे. 'जाव मणीनां वण्णओ' मा प्रमाणे
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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