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________________ प्रमेयधोतिका टोका प्र.३ उ.३ सू.७५ निलवंतादिह्रदनिरूपणम् वर्णकः (विजयद्वारस्याऽऽलिङ्गपुष्करम् मृदङ्गः इत्यारभ्य मणिस्पर्शान्तं वर्णनंमिहा: पि) 'तस्स णं वहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स' तस्य' यथावर्णित वनस्य खल सम्बन्धिनो बहुसमरमणीयभूमिभागस्य वहुमज्झदेसमाए' बहुमध्यदेशभागे 'एत्थ णं मणिपेढिया पन्नत्ता' अत्र बहुमध्यदेशमागे महत्येका मणिपीठिका प्रज्ञप्ता: कथितो प्रसिद्धाया च-'पंच धणुसयाई आयामविक्खं भेणं' भवनपरिसरे पञ्च धनु: शतानि आयामविष्कम्माभ्यां वर्तते 'अड्डाइजाई घसुसयाई वाहल्लेणे अर्धत्तीयानि धनुः शतानि सार्धद्वि धनुश्शते वाहल्येन-स्थौल्येन 'सव्यमणिमई सर्वामना मणिमयी वेदिकाऽच्छा-श्लक्षणा घृष्टा स्रष्टा नीरजस्का निर्मला निष्पकी निष्कण्टकच्छाया स प्रभा सोयोता समरीचिका प्रासादोया दर्शनीयाऽभिरूपा लेकर 'जाव भणीनां वष्णओ' इस अन्तिम सूत्र पाठ तक विजयद्वार का वर्णन किया गया है उसी तरह से इसी सूत्र पाठ से लेकर इस अन्तिम सून पाठ तक इस बहुरूमरमणीय भूमिमांग का भी वर्णन यहां पर कर लेना चाहिये । 'तस्त गं बहुसमरमणिज्जस्सं भूमिभागस्स उस भवन के बहुसमरमणीय भूमिभाग के 'बहुमज्झदेसभाए' बहुमध्य देश में 'एस्थ णं पणिपेढ़िया पणत्ता' एक मणिपीठिका है यह मणिपीठिका, 'पंचधणुलयाई आयामविखंभेणं' लम्बाई चौडाई में पांचसौ धनुष, की है । 'अड्डाइज्जाई धणुसयाई. बाहल्लेणं' एवं मोटाई में अढाई सौ धनुष की है 'सव्वमणिमयाई. यह सर्वोत्सना मणिमय हैं । 'अच्छा इलक्ष्णा, घृष्टा, मृष्टा, नीरजस्का, निर्मला, निष्पङ्का, निष्कण्टकच्छाया, समभा, सोयोता, संमरीचिका, प्रासादीया, दर्शनीया, अभिरूपा, प्रतिरूपा' वेदिका के वर्णन में इन पदों को भी 'आलिङ्गपुक्खरेइवा' 20 सूत्री वन 'जाव मणीणां वण्णओ' मा मन्तिम સૂત્રપાઠ પર્યત વિજય દ્વારનું વર્ણન કરવામાં આવેલ છે. એ જ પ્રમાણે આ સૂત્રપાઠથી લઈને આ અંતિમ સૂત્રપાઠ સુધી આ બહુસમરમણીય ભૂમિભાગનું पर्वा न मडीयो ४२ पु 'तस्स णं -बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागेस्स' से सपनना मसमरभणीय भूमिमान 'बहुमज्झदेसभाए' महु भय देशमागमा 'एत्थ ]. मणिपेढिया पण्णत्ता' मे भएपी, छ. मा मणिका... 'पंच धणु सयाई आयामविक्खंभेणं' पायस धनुषनी "An पहा वाजी छ: 'अडाइन्लाई धणुसयाई वाहल्लेणं' म. MISi २५० Aढी योनी छे. 'संठन मणिमयाई' से सर्वात्मना भणुिभय छ: 'अच्छा, क्षणी, घृष्टी, मृष्टा, नीरजस्का, निर्मला, निष्पका निष्कंटकच्छाया, सप्रभा, सोद्योता, समरीचिंका, प्रासादीया, दर्शनीया, अभिरूपा प्रातरूपा' आना पनमा म ५ ५५ अर जी० ५५
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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