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________________ ४०८ जीवाभिगमसूत्र जोयणसताई आयामविक्खंभेणं' मध्ये सार्धसप्तयोजनशतानि आयामविष्कम्भेण, 'उवरि पंचजोयणसयाई आयामविक्खंभेणं' ऊर्बभागे पञ्चयोजनशतानि दैर्घ्य विस्ताराभ्याम् 'मूले तिणि जोयणसहस्साई' मूले त्रीणि योजनसहस्राणि 'एगचवावहिँ जोयणसतं किंचि विसेसाहियं परिक्खेवणं' एकञ्च द्वाषष्टम् द्वापष्टय धिकं योजनशतं किञ्चिद्विशेषाधिकं परिक्षेपेण प्रज्ञप्ती यमकौ तावदद्री, 'मज्झे दो जोयणसहस्साई'-मध्ये द्वे योजनसहरी 'तिम्नियवावत्तरे जोयणसते किंचि 'विसेसाहिए परिक्खेवेणं' पण्णत्ते त्रीणि योजनशतानि द्वासप्तत्यधिकानि २३७२ किञ्चि द्विशेषाधिकानि परिक्षेपेण यमकावासाते 'उप्पि पन्नरसं एक्कासीते जोयणसते किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते उपरि पञ्चदश योजनशतानि एकाशीतानि किश्चिद्विशेषाधिकानि उपरि एकं योजनसहस्रं पंचच एकाशीतानि योजनशतानि एकाशीत्यधिकानि च पञ्चशतानीत्यर्थः, किञ्चि द्विशेषाधिकानि परिक्षेपेण प्रज्ञप्तौ तौ यमकौ इत्यर्थः 'मूले विच्छिण्णा' मूले विस्तीर्णी 'मज्झेसंखित्ता' मध्ये संक्षिप्तौ, 'उप्पि तणुया' उपरि स्वल्पो, एतावता गोपुच्छसंठाण जोयणसयाई आयामविक्खंभेणं' मध्य में ये साढे सात सौ योजनके लम्बे चौडे हैं और 'उपरि पंच जोयणसयाइं आयामविक्खंभेणं' ऊपर में पांच लौ योजन के लम्बे चौडे हैं। 'मूले तिणि जोयणसहस्साई एगं वाचढि जोयणसयं किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं' मूल में तीन हजार एक सौ बासठ योजन से कुछ अधिक की परिधि है 'मज्झे दो जोयणसहस्साई तिन्निय वावत्तरे जोयणसए किं चिविसेसाहिए परिक्खेवेणं मध्य में दो हजार तीन सौ बहत्तर योजन से कुछ अधिक परिधि है । 'उप्पि पन्नरसं एक्कासीते जोयणसए किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते' तथा ऊपर में १५८१ योजन से कुछ अधिक की मे १२ योननी मा पाडला पाणी छ. 'मझे अट्ठमाइं जोयणसयाई आयामविक्खंभेण' मध्यम से सार सातसो योन ail पहा छ. मने 'उवरि पंच जोयणसयाई आयामविक्खंभेण' 8५२ना मागमा पांयसो योननी als पापा पण छे. 'मूले तिन्नि जोयणसहस्साई एग वावर्द्धि जोयणसर्थ किंचिबिसेसाहिया परिक्खेवेण' भूदमा ए र गेसो ४ योनिश्री ४४४ पधारेनी पारिधि छे. 'मज्झ दो जोयणसहस्साई तिन्निय बावत्तरे जोयणसए किंचि विसेसाहिए परिम्पवेणणे तर सोमांतर यो नयी पधारेनी परिधि छ. उप्पिं पन्नरसं एकतीसे जोयणसए किंचि विसेसाहिए परिक्खवेणं पण्णत्ते' एक्कासीते जोयणसए किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं' तथा ५२ना लामा १५८१ परसे। એકાસીજનથી કંઈફ વધારે તેની પરિધિ છે, આ યમક પર્વત આ રીતે
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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