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________________ ' प्रमेयद्योतिका टीक्षार.३ उ.३ सू.७४ यमकपर्वतनामादिकनिरूपणम् ४०९ सैठिओ' गोपुच्छसंस्थितिं दधतौ सव्वकणगमया' सर्व कनकमयौ 'अच्छा-सण्हा जीव पंडिरूवा' अच्छौ श्लक्ष्णौ घृष्टौ सृष्टी निर्मलौ निप्पङ्को निष्कण्टकच्छायौ पोसादीयौ सोयोती समरीचिकौ दर्शनीयौ-अभिरूपौ-प्रतिरूपौ इति । 'पत्तेयं पत्तियं, पउमवरवेइया परिक्खित्ता' प्रत्येकं २ पद्मवरवेदिका परिक्षिप्तौ-तावेकैकं पदमवरवेदिकया परिवेष्टितौ 'पत्तेथे २ वणसंडपरिक्खित्ता' प्रत्येकं २ तौ यमको वलपण्डेनाऽऽचिती वणो दोहवि' वर्णको द्वयोरपि । अत्र पद्मवरवेदिकायाः वनखण्डच वे वर्णनं जगत्युपरि पद्मवेदिका वनषण्डवर्णनवदेव . कर्त्तव्यम् । परिधि है थे यमक पर्णन इस तरह से 'सूले विच्छिन्ना, मज्झे संखित्ता,, उणि लणुया स्कूल में विस्तीर्ण हैं मध्य में संकुचित हैं और ऊपर में पतले हैं एतावता ये 'गोपुच्छसंठाणसंठिओ' गो पुच्छ के जैसे आकार वाले हैं। ये दोनों चमक पर्वत 'सव्वकणगमया' सर्वात्मना स्वर्णमय हैं 'अच्छा सहा जाच पडिला आकाश स्फटिक मणि के जैसे निर्मल हैं चिकने हैं और चावल प्रतिरूप हैं 'धृष्टौ, मृष्टी, निर्मलो, निष्पंको, निष्कंटकच्छाची, प्रासादीयौ, लोद्योती, समरीचिकौ, दशनीयौ, अभिरूपौ प्रतिरूपी इन पदों का यहाँ यावत शब्द से ग्रहण हुआ है। 'पत्तेयं २ पउनबरलेश्या परिखिता' ये प्रत्येक पर्वत श्रेष्ठ एक २ पद्मवर वेदिका से परिक्षित फिरेहए हैं। 'पत्तेय वणसंडपरिखित्ता' ये प्रत्येक वन खण्ड ले व्यावहै 'वण्णओ दोण्हवि' इस प्रकार से यह दोनों पर्वतों का वर्णन है पावर वेदिका का और वनषण्ड का वर्णन जैहा जगती जपर जो पावर बेदिका का एवं वनषण्ड का वर्णन 'मूले विच्छिन्ना, मज्झे संखित्ता, उपि तणुया,' भूमाम विस्तार पाछ મધ્યભાગમાં સંકુચિત છે. અને ઉપરના ભાગમાં પાતળા છે. તેથી તે પર્વત 'गोपुच्छसंठाणसंठिया' आयना ७१ २२ना या मारना छ. २मा पन्ने यभर पर्वत 'रामकगगगया' सव शते सुवर्ण भय छे. 'अच्छा सण्हा जाव पडिरूवा' ५ गते २४ मणिना रेवा नि छ. यि छे. मने यावत् प्रति३५ छ. 'पुण्ठौ, सृष्टी निर्मलो, निप्पंको, निष्कंटकच्छायौ, प्रासादीयौ सोधोतों समरीचिको दर्शनीयो अभिरूपौ प्रतिरूपौ' । पहो यावत् २०४थी अY ४२राया छे. 'पतेयं पलेय प उमपरवेझ्या परिक्खित्ता' ये ४२४ ५। 8 मे मे ५२ वेdिia परक्षित छ. अर्थात् घरायेा छे. 'पत्ते वणसंडपरिविखत्ता' यो २४ पता २ नथी व्यास छे. 'वण्णओ दोण्हवि' मा रीते આ બન્ને પર્વતનું વર્ણન કરવામાં આવેલ છે. અહીંયાં પાવર વેદિકા અને વનખંડનું વર્ણન જેમ જગતની ઉપર જે પાવર વેદિકાને અને વનખંડનું વર્ણન जी० ५२
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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