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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.७४ यमकपर्वतनामादिकनिरूपणम् ४०७ योजनशतानि चतुस्त्रिंशदधिकानि इत्यर्थः चतुरश्च योजनस्य सप्तभागान् 'अवाधाए'-अबाधया-अपान्तराले मुक्त्वेत्यर्थः, 'सीयाए महाणईए' सीता । शीता। नाम्न्यो महानद्याः 'पुचपच्छिमेणं' पूर्वपश्चिमेन 'उभओ कूले' उभयोस्तटयोः 'एत्थ णं उत्तरकुराए' अत्र खलूत्तरकुरुषु 'जमगा णाम दुवे पव्वया पन्नत्ता'यमको नाम द्वौ पर्वतौ प्राप्तौ 'एगमेगं'-एकैकः सीतायाः पूर्वपश्चिमयोरेकत्रकूले व्यवस्थितः स च-'एगमेगं जोयणसहस्सं उड्डूं उच्चत्तेणं' प्रत्येकं २ योजनसहस्रमूर्ध्व मुच्चत्वेन 'अड्राइज्जाई जोयणसताणि उव्वेहेणं' अर्धतृतीयानि योजन शतानि-उद्वेधेनाऽवगाहनेन मेरुव्यतिरेकेण शेप शाश्वतपर्वतानां सर्वेषामविशेषेणोच्चत्वाऽपेक्षया चतुर्भागस्याऽवगाहनाभावात् । 'मूले एगमेगं जोयणसहस्सं आयाम वेखंभेणं' प्रत्येकं योजनसहस्रमायामविष्कम्भाभ्यां मूले, 'मज्झे अट्ठमाई णस्स अवाधाए' हे गौतम ! नीलवन्त पर्वत की दक्षिण दिशा से ८३४४ योजन आगे जाने पर "सीताए महाणईए 'पुचपच्छिमेणं' सीता महानदी के पूर्व पश्चिम में 'उभयो कूले दोनों तटों के किनारे 'इत्थणं उत्तरकुराए जमगानाम दुवे पव्वत्ता पण्णत्ता' उत्तरकुरु क्षेत्र में दो यमक नाम के पर्वत हैं 'एगमेगं जोयणसहस्सं उर्दू उच्चत्तेणं' इन में एक एक यमक की ऊंचाई एक एक हजार योजन की है इनमें एक सीता महानदी के पूर्व किनारे पर है । और दूसरा पश्चिम किनारे पर है इनके जमीन में गहराई 'अड्राइज्जाई जोयणसयाई उज्वेहेणं' अढाई सौ योजन की है। ऊंचाई की अपेक्षा शाश्वत पर्वत की जमीन के भीतर गहराई चतुर्थ भाग प्रमाण होती है इसी लिए गहराई २५० योजन की वतलाई गई है 'मूले एगमेगं जोयणसहस्सं आयामविक्खभेणं' ये पर्वत मूल में एक हजार योजन के लम्बे चौडे हैं 'मज्झेअद्धहमाई દક્ષિણ દિશાથી ૮૩૪ આઠસે ચેત્રીસ સાતિયા ચાર જન આગળ જવાથી 'सीताए महाणईए (पुव्वपच्छिमेणं), सीता मडा नहीना पूर्व पश्चिममा 'उभओ फूले' भन्ने तटाना नारे 'एत्थणं उत्तरकुराए जमगा नाम दुवे पव्यया पण्णत्ता' उत्तर १३ क्षेत्रमा मे यम नामना पत। छे. 'एगमेगं जोयणसहस्सं उड़द उच्चत्तेण' नामे से यमनी जया मे ये जर योगननी छे. तेभ એક સીતા મહાનદીના પૂર્વ કિનારા પર છે. અને બીજું પશ્ચિમ કિનારા ५२ छ. तेनी भीनमी मनी 60 'अइढाइज्जाई जोयणसयाई उज्वेहेण" અઢારસે જનની છે. ઉંચાઈની અપેક્ષાએ શાશ્વત પર્વતની જમીનની અંદર ની ઉંડાઈ ચેાથા ભાગ પ્રમાણ વાળી હોય છે. તેથી ઊંડાઈ ૨૫૦ અઢીસો योगननी इस छे. 'मूले एगमेगं जोयणसहस्सं आयामविक्खभण' को भूमा
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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