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________________ जीवामिगमसूत्रे 'वहवे वेरुलियामईओ धूपघटियाओ पन्नत्ताओ'-बडयो वैडूर्यमय्यः धूपघटिकाः प्रज्ञप्ता, कथिताः 'ताओणं धूवघडियाओ' नाश्च खलु धूपघटिकाः, कालागुरुपवरकुंदरुकतुरुक्कनाव घाणमणोणिव्वुइकरेणं गंधेणं'-कालागुरुप्रवरकुन्दरुष्कतुरुकधूपमघमघायमानघ्राणमनोनिर्वृतिकरणगन्धेन, 'सव्वतो समंता आपूरेमाणीओ चिटंति'-सर्वतः सर्वासु द्विक्षु समन्ततः सागस्त्येनाऽऽपूर्यमाणास्तिष्ठन्ति, । 'अत्र फलक तोरण नागदन्तधूपघटिकावर्णनं विजयद्वारवदेव कर्तव्यम्) विस्तरभयान्नेह पुनः प्रपञ्च्यते ॥ 'सभाएणं सुहम्माए'-सभायाः खलु सुधर्मायाः, 'अंतो वहसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नत्ते'-अन्तर्मध्यभागे बहुसमरमणियो भूमिभागः प्रज्ञप्तः, 'जाव मणीणं फास'-यावन्मणीनां रपर्शः, विजयद्वारवदेवाऽत्रापि भूमिभाग वर्णनं मणिस्पर्शान्तं यावत्कर्तव्यम् । 'उल्लोया पउमभत्तिचित्ता जाव सव्य तवहुए छींके हैं 'तेसिणं रययायएसु सिक्कएसु' उन चांदी के सीकों पर 'वहवे वेरुलियामईओ धूवघटियाओ पन्नत्ताओ' अनेक वैडूर्यरत्नके बने हुए धूप घट रखे हुए है। 'ताओ णं धूवघटियाओ' ये धूपघट 'कालागुरुपवर कुंदक्कतुरुक्क जाव घाणमणो णिव्वुइकरेणं गंधेणं' कालागुरु की प्रवर कुन्दरु की और तुरुष्क-लोभान की घ्राण और मनको आनन्दित करने वाली गंध से 'सचओ समंता आपूरेमाणीओ चिट्ठति' चारों ओर से खूब भरे हुए है । यहां पर फलक, तोरण नागदन्त और धूप घटिकाओं का वर्णन विजयटार के वर्णन के जैसे ही करलेना चाहिये यहां 'सभाएणं सुहम्माए' सुधर्मा सभा के 'अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते' भीतर में जो भूमिभाग है वह बहु समरमणीय है । 'जाव मणीणं फासो' यहां मणिस्पर्श तक को विजयद्वार के जैसा ही भूमि भाग का वर्णन कर लेना चाहिये 'उल्लोया पउम'वहवे रययामया सिक्कगा पन्नत्ता' याहीन मनसा मन सीया छे. 'तेसिणं रययामएसु सिक्कासु' को याहीना सीमानी ५२ 'बहवे वेरुलियामईओ धूवघटियाओ पण्णत्ता' वैडूय रत्ननी गनेस मने धूपघटिया-धूपहानीया राणे छ. 'ताओ णं धूवघटियाओ' ये धूपघटी 'कालागुरु पवरकुंदुरुक्कतुरुक्क जाव धाणम निव्वुइकरेणं गंधेणं' माशु३ना प्रपर हुनी अने तु३५४-सामानना भन भने प्राण द्रियने भान पभावावा यथी 'सव्वओ समंता आपूरेमाणीओ चिट्ठति' थारे त२५थी भूम लरेसा छे. महायो ५६४, ता. नात भने धूपघटिजागानु पूर्ण न ४ नये. माडी 'सभाएणं सुहम्माए' सुधर्म समान अंतो बहुममरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते' मरना २ भूमिमा छ त मसमरभणीय छे. 'जाव मणीणं फासो' मही या सुंदर मलियाना २५श सुधा वियाना वर्णन प्रमाणे मूभिमान वन ४री नय. 'उल्लोया
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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