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________________ प्रमेयधोतिका टीका प्र.३ उ.. सू ६२ मध्यभागस्थितमणिपीरिकायाः वर्णनम् २१५ णिज्जमए अच्छे जाव पडिरूवे' उल्लोकाः पद्मभक्तिचित्रा यावत् सर्व तपनीयमयः अच्छः श्लक्ष्णो यावत् प्रतिरूपः, इहापि-उल्लोकादि वर्णनं विजयद्वारवदेव करणीयम् सू०॥६१॥ ___मूलम्-तस्स णं बहुसमरमणिजस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं एगा महं मणिपेढिया पन्नत्ता, साणं मणिपेढिया दो जोयणाई आयामविक्खंभेग जोयणं बाहल्लेणं सव्वमणिमया ॥ तीसे णं मणिपेढियाए उपि एत्थ णं माणवए णामं चेइयखंभे पण्णत्ते अट्ठमाइं जोयणाइं उर्दू उच्चतेणं अद्धकोसं उव्वेहेणं अद्धकोसं विक्खंभेणं छकोडीए छलं से छविग्गहिए वइरामयवटलटुसंठिए एवं जहा माहिंदज्झयस्स वण्णओ जाव पासाइए । तस्स णं माणवगस्स चेइय खंभस्स उरि छक्कोसे ओगाहित्ता हेटा वि छक्कोसे वज्जेत्ता मज्झे अद्धपंचमेसु जोयणेसु एत्थ णं बहवे सुवष्णरुप्पमया फलगा पन्नत्ता भत्तिचित्ता जाव सव्व तवणिज्जमए अच्छे जाव पडिरूवे' सुधर्मा सभा में उल्लोक ऊपर की छत्तपर चन्दोवा है पद्मलता के चित्र हैं यावत् ये सब तपे हुए सुवर्ण के बने हुए है 'अच्छे जाव पडिरूवे' अच्छ आकाश और स्फटिक मणि के जैसे निर्मल हैं और यावत् प्रतिरूप है इस तरह से उल्लोक आदिकों का वर्णन विजयद्वार के वर्णन के जैसा ही जानना चाहिये। अर्हन्नपि जिनश्चैव, जिन: सामान्य केवली। कंदर्पोऽपि जिनश्चैव जिनो नारायणो हरिः इति । हैमीनाममाला ॥सू०६१॥ पउमभत्तिचित्ता जाव तवणिज्जमए अच्छे जाव पडिरूवे' सुधसिलामा Seals ઉપરની બાજુ ચ દર છે. પલતાના ચિત્રો છે. યાવત્ એ બધા તપેલા સેનાના छ. 'अच्छे जाव पडिरूवे' १२७-माश मने २५८४ मणि प्रमाणे नि छ. અને યાવત્ પ્રતિરૂપ છે. એ રીતે ઉલ્લેક વિગેરેનું વર્ણન વિજય દ્વારના વર્ણન પ્રમાણે કરી લેવું. 'अर्हन्नपि जिनेश्चैव, जिनः सामान्य केवली कंदर्पोऽपि जिनश्चैव, जिनो नारायणो हरिः ॥ इति हैमीमाला ॥ सू. ६१ ॥
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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