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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ ३.६० विजयायाः चतुदिक्षु वनषण्डादिकनि० १५९ लौहितादिध्वजाः पताकातिपताकाः छत्राऽतिच्छत्राणि वक्तव्यानि । 'तत्थण' तत्र वनपण्डमध्ये खल 'चत्तारि देवा' चत्वारो देवाः, 'महद्धिया जाव पलिओवमद्विइया परिवसंति' महर्दिकाः महद्युतिनाः महावला: महायशसः महासौख्या: महानुभावाः पल्योपमस्थितिकाः परिवसन्ति, तं जहा-तद्यथा 'असोए' अशोको अशोकवने अशोको देवः प्रतिवसति, 'सत्तवण्णे -सप्तवर्णः सप्तपर्णवने सप्तपर्णवनो नामादेवः परिवसति,-'चंपए' चम्पकः चम्पकवने चम्पको नामदेवः परिवसति, 'चूए' चूतः चूतवने चूतो नामदेवः परिवसति, इति 'तत्थ णं तेसाणं तेसाणं वणसंडाणं' तत्राऽशोकवनादौ विद्यमानास्ते खलु-अशोकादयो देवाः झया छत्ताइछत्ता' अनेक अष्ट मंगल द्रव्य है-इनके नाम श्रीवत्स स्वस्तिक वर्द्धमानक आदि है।तथा कृष्णवर्ण की नोलेवर्ण की और लोहित रक्त आदि वर्ण की अनेक श्वजाएं हैं । अर्थात् अनेक पताकातिपताकाएं भी हैं और इनमें छत्रो के ऊपर मे भी अनेक छत्र लटके हुए है। 'तत्थणं वणसंडे' इन वनखंडो के बीच में 'चत्तारि देवा' चार देव जो कि 'मह दिया जाव पलिओवरहिइया परिवसंति' परिवार आदि रूप महाऋद्धिवाले है शरीर आमरण आदि के विशिष्ट कान्ति पुंज से जो युक्त है महाबलशाली है महायश संपन्न और महा सुखों के भोक्ता है। तथा जिनका प्रभाव भी बहुत अधिक है एवं जिनकी एकपल्योपम की स्थिति है रहते है 'तं जहा' जैसे-'असोए' अशोक वन में अशोक नामका देव रहता है 'सत्तवण्णे' सप्तपर्णवन में सप्तपर्णवन नामका देव रहता है 'चपए' चम्पकवन में चम्पक नामका देव रहता है 'चूए' आम्रवन में चूय नामका देव रहता है 'तत्थ णं तेसाणं छत्ताइछत्ता' मने मष्टमा द्रव्य छे. तेना नाम श्रीवास; स्वस्ति, भान વિગેરે પહેલા કહેવામાં આવી ગયેલ છે તે પ્રમાણે સમજવા. તથા કાળાવની નીલવર્ણની અને લાલ વર્ણની વિગેરે રંગની અનેક ધજાઓ છે. અને તેમાં छत्रानी ५२ ५६ भने छत्री सटा छ. 'तत्थ णं वणसंडे' से वनमनी क्यमा 'चत्तारि देवा' या२ हे रेमो 'महद्धिया जाव पलिओवमविइया परिवसंति' परिवार विगेरे ३५ महाद्धि वा छे. शरी२ २मास२६ विगेरेथी વિશિષ્ટ કાંતિપું જેથી યુક્ત છે. મહાબલશાલી છે. મહાયશ સંપન્ન અને મહાસુઓને ભેગવવા વાળા છે. તથા જેને પ્રભાવ પણ ઘણું વધારે છે. અને જેની स्थिति मे पक्ष्योपभनी छे. या यार । २ छे. 'तं जहा' ते माप्रमाणे छे. 'असोए' मशवनमा म नामना हेव निवास ४२ छे. 'सत्तवण्णे' सस પર્ણવનમાં સપ્તપર્ણ નામના દે રહે છે. “સૂપ” આમ્રવનમાં ચૂયનામના દેવ રહે.
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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