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________________ जीवाभिगमसूत्रे १५६२ समयमणूसाणं, पढमसमयदेवाणं-अपढमसमयदेवाणं, पढमसमयसिद्धाण-अपढमसमयसिद्धाणय कयरे कयरेहितो अप्पावा-बहुया वा-तुल्ला वा विसेसाहिया वा' एतेषां प्रथमाऽप्रथमभेदवतां नैरयिक-तिर्यग्योनिक-मनुष्य-देवानां, तथाविधसिद्धानां च कतरे कतरेभ्योऽल्पा वा-बहुका वा-तुल्या वा- विशेषाधिकावेति प्रश्ने भगवानाह-गोयमा! सव्वत्थोवा-पढमसमयसिद्धा-पढमसमयमणूसा असंखेजगुणा-अपढमसमयमणसा असंखेज्जगुणा, पढमसमयणेरड्या असंखेजगुणापढमसमयदेवा असंखेजगुणा-पढमसमयतिरिक्खजोणिया असंखेजगुणा, अपहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा' हे भदन्त ! इन प्रथम समयवति नैरयिकों के, अप्रथम समयवर्ति नैरयिकों के, प्रथम समय तिर्यग्योनिकों के, अप्रथम समय तिर्यग्योनिकों के, प्रथम समय मनुष्यों के, अप्रथम समय मनुष्यों के प्रथम समय देवों के, अप्रथम समय देवों के, प्रथम समय सिद्धों के और अप्रथम समय सिद्धों के बीच में कौन किनकी अपेक्षा अल्प हैं ? कौन किन की अपेक्षा बहुत हैं कौन किनके बराबर हैं ? और कौन किनकी अपेक्षा विशेषाधिक हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! सव्वत्थोवा पढमसमयसिद्धा' हे गौतम ! इनमें सबसे कम प्रथम समय सिद्ध है। इनकी अपेक्षा-'पढम समयमणूसा असंखेजगुणा' प्रथम समय मनुष्य असंख्यातगुणे अधिक हैं। इनकी अपेक्षा 'अपढमसमय मणुस्सा असंखेज्जगुणा' अप्रथम समय मनुष्य असंख्यातगुणें अधिक हैं इनकी अपेक्षा 'पढमसमयनेरइया असंखेज्जगुणा' प्रथम समय नैरयिक असंख्यातगुणे अधिक हैं। इनकी अपेक्षा ‘पढमसमय देवा असं०' कयरे कयरेहितो अप्पा वा वहुया वी तुल्ला वा विसेसाहिया वा' भगवन् मा प्रथम સમયવતી નચિકે અપ્રથમ સમયવતી નરયિકે, પ્રથમસમયવતિ તિનિકે અપ્રથમ સમયવતિ તિર્યાનિકે, પ્રથમ સમયવતી મનુષ્ય, અને અપ્રથમ સમયવતી મનુષ્ય, પ્રથમ સમયવતી દેવ અને અપ્રથમ સમય વતી દેવ, પ્રથમ સમયવતિ સિદ્ધ અને આ પ્રથમ સમયવતિ સિદ્ધ, એ બધામાં કેણુ કેના કરતાં અલ્પ છે.? કે કેનાથી વધારે છે? કેણ કેની બરોબર છે અને કેણ કેનાથી વિશેષાધિક છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે 'गोयमा । सव्वत्थोवा पढमसमयसिद्धा' हे गौतम ! तमा सौथी माछा प्रथम समयपतिः सिद्धो छ. तना ४२i 'पढमसमयमणूसा असंखेज्जगुणा' प्रथम समयवती भनुष्य मस ध्यात्तगए। वधारे छे. तेना ४२di 'अपढमसमय मणूसा असंखेज्जगुणा' मप्रथम सभयवती मनुष्यो छे तो मस ज्यात पधारे छे. तेना- ४२di 4g. 'पढ़मसमय नेरइया असंखेज्जगुणा' प्रथम समयमा
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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