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________________ १२७० जीवाभिगमसूत्रे प्रदेशार्थतया संख्येयगुणाः, 'सुहमनिओयजीवा अपज्जत्ता परसट्टयाए असंखेज्जगुणा' ततश्च सूक्ष्मनिगोदजीवश अपर्याप्ताः प्रदेशार्थतया संख्येयगुणाः 'हुमनिओयजीवा पज्जत्ता परसहाए संखेज्जगुणा' ये च पर्याप्ताः सूक्ष्मनिगोदास्ते प्रदेशार्थतया संख्येयगुणाः । 'सुद्दमणिओयजीवेहिंतो पएसहयाए वायर निओया पज्जता परसाए अनंतगुणा' सूक्ष्मनिगोदजीवेभ्यश्च प्रदेशार्थतया पर्याप्ता बादरनिगोदा: प्रदेशार्थतयाऽनन्तगुणाधिकाः | 'वायरनिगोदा अपज्जत्ता परसट्टयाए असंखेज्जगुणा' ततो बादरनिगोदा अपर्याप्तकाः प्रदेशार्थतयाऽसंख्येयगुणाः एभ्यः सूक्ष्मनिगोदाः अपर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः 'मुहमनिओया पज्जत्ता परसट्टयाए संखेज्जगुणा' एभ्यः सूक्ष्मनिगोदाः पर्याप्ताः प्रदेशार्थतया संख्येयगुणाः । गुर्णे अधिक हैं 'सुमनिगोदजीवा अपज्जत्ता पएसइयाए असंखेज्जगुणा' सूक्ष्मनिगोद जीवों में जो अपर्याप्तक जीव हैं, वे प्रदेश दृष्टि से पूर्व की अपेक्षा असंख्यातगुणें अधिक है । 'हुम निगोद जीवा पज्जन्ता परसट्टयाए संखेज्जगुणा' सूक्ष्म निगोदों में जो पर्याप्त जीव हैं वे प्रदेश दृष्टि से पूर्व की अपेक्षा संख्यातगुणें अधिक हैं । 'सुम निगोद जीवेर्हितो वायर निगोदा पज्जन्त्ता पएसइयाए अणंसगुणा' पर्याप्तक सूक्ष्म निगोद जीवों से वादर निगोद पर्याप्तक जीव प्रदेशदृष्टि से अनन्तगुर्णे अधिक हैं। इनकी अपेक्षा 'वायरनिगोदा अपज्जन्तगा परसट्टयाए असंखेज्जगुणा' बादर निगोदों के अपर्याप्तक जीव प्रदेश दृष्टि से असंख्यातगुणें अधिक हैं । इन की अपेक्षा प्रदेश दृष्टि से सूक्ष्म निगोद अपर्याप्तक असंख्यातगुणें अधिक हैं ! 'सुम निगोदा पज्जन्त्ता परसट्टयाए संखेज्जगुणा' इनकी अपन्जन्त्ता परसट्टयाए अस खेज्जगुा' सूक्ष्म निगोहोभां ने अपर्याप्त भयो छे, तेथे प्रदेश पाथी पहेलाना पुरता असण्यातगा वधारे हे सुहुम निगोदजीवा पज्जत्ता परसट्टयाए स खेज्जगुणा' सूक्ष्म निगोहोभां ने पर्यासः कवे छे तेथे प्रदेश पशुाथी पहेसाना रतां सभ्याता वधारे छे. 'सुहुम निगोदजीवेहिंतो पसट्टयाए बायर निगोदा पसट्टयाए अनंतगुणा' पर्यास सूक्ष्म निगाह लव થી ખાતર નિગોદ પર્યાંસક જીવ પ્રદેશપણાથી અનંતગણા વધારે છે. તેના ४२di 'बायर निगोदा अपज्जत्तगा परसट्टयाए अस खेज्जगुणा' बाहर निगोहना અપર્યાપ્તક જીવે પ્રદેશ દષ્ટિથી અસ યાતગણા વધારે છે. તેના કરતાં પ્રદેશ दृष्टिथी सूक्ष्म निगोह अपर्याप्त असण्यातगया वधारे छे. 'सुहुम निगोदा
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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