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________________ प्रद्योतिका टीका प्र.५ सु. १३५ सामान्यतो निर्गादस्वरूपनिरूपणम् १२६९ पज्जत्ता दव्वट्टयाए संखेज्जगुणा' एभ्यः सूक्ष्मनिगोदा: पर्याप्ता द्रव्यार्थतया संख्येयगुणाः 'सुहुमणिभ एहिंतो दव्वट्टयाए बायरनिभयजीवा पज्जत्ता दव्वट्टयाए अनंतगुणा' सूक्ष्मनिगोदेभ्यो द्रव्यार्थतया बादरनिगोदजीवाः पर्याप्ता द्रव्यार्थतयाऽनन्तगुणाः । 'बायरनिओयजीवा अपज्जत्ता दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा' एभ्यो बादरनिगोदजीवा अपर्याप्तका द्रव्यार्थतयाऽसंख्येयगुणाः 'सुहुमनिओयजीवा अपज्जत्ता दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा' ततः सूक्ष्मनिगोदजीवा अपर्याप्ता द्रव्यार्थ - तयाऽसंख्येयगुणाः 'सुहुमनिओयजीवा पज्जत्ता दव्वट्टयाए संखेज्जगुणा' ततः सूक्ष्मनिगोदजीवाः पर्याप्ताः द्रव्यार्यतया संख्येयगुणा इति । 21 'पएस याए - सव्वत्थोवा बायरनिओयजीवा पज्जत्ता परसट्टयाए ' सर्वस्तोका बादरनिगोदजीवाः पर्याप्ताः प्रदेशार्थतया 'बायरणिओया अपज्जत्ता पंएसट्टयाए असंखेज्जगुणा' ततः प्रदेशार्थतया बादरनिगोदजीवा अपर्याप्ताः से असंख्यातगुणें अधिक हैं । 'सुहुम निगोदा पज्जन्ता दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा' इनकी अपेक्षा जो सूक्ष्म निगोदों में पर्याप्तक जीव हैं वे द्रव्य दृष्टि से असंख्यातगुणें अधिक हैं । 'सुहुम निगोदा पज्जत्ता दव्वट्टयाए संखेज्जगुणा' सूक्ष्म निगोदों में जो पर्याप्त हैं वे इनकी अपेक्षा द्रव्य दृष्टि से संख्यातगुणें अधिक हैं। 'हुम णिओए हिंतो दवाए बायरणिओयजीवा पज्जत्ता दव्वट्टयाए अनंतगुणा' बायरणिओय जीवा अपज्जत्ता दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा सुहुम णिओयजीवा पज्जत्ता दव्वट्टयाए संखेज्जगुणा परसट्टयाए सव्वत्थोवा बायरनिगोदजीवा पज्जत्ता पण्णत्ता' प्रदेश दृष्टि से विचार करने पर बादर निगोदों में जो जीव पर्याप्तक हैं वे सब से कम हैं 'बादर निगोदा अपज्जतगा पएसट्टयाए असंखेज्जगुणा' बादर निगोदों में जो अपर्याप्तक जीव होते हैं, वे प्रदेश दृष्टि से पूर्व की अपेक्षा असंख्यात पज्जत्ता दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा' तेना उरता सूक्ष्म निगोहोमां ने पर्या लवे छे तेथेो द्रव्यपणाथी असभ्याता वधारे छे. 'सुहुम निगोदा पज्जन्त्ता दव्वट्टयाएं सखेज्जगुणा' सूक्ष्म निगोहोभां भेथे पर्यास छे तेथे तेना रतां द्रव्यपणाथी सौंध्यातला वधारे छे. 'पएसटुयोए सव्वत्थोवा बायर निगोद बायरनिगोदजीवा पज्जत्ता पण्णत्ता' प्रदेशयागाथी विचार हरतां जाहर निगोहोम ? पर्याप्त व छे तेथे सौथी गोछा छे. 'बादर निगोदा अपज्जत्तगा पएवट्ठयोए अस खेज्जगुणा' यावर निगोहोमां के यर्या व छे तेम प्रदेशपणार्थीी पडेसाना रतां असभ्याता वधारे छे. सुहुमनिगोदजीवा
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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