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________________ -- प्रमेयद्योतिका टीका म उ स. ११९ शक्रादिदेवानां परिषदादिनि० १०२९ पन्नत्ता मज्झिमियाए छपलिओवमाई वाहिरियाए पंचपलिओवमाई ठिई पण्णत्ता' आभ्यन्तरिकायां पर्पदि सप्त० मध्यमिकायां पट्० बाह्यायां पञ्चपल्योपमानि देवानां स्थितिः प्रज्ञप्ता इति । ___ 'देवीणं पुच्छा०' हे भदन्त ! देवीनामीशानदेवेन्द्रविमाने कियती स्थितिः इतिः पृच्छाऽऽस्ते ? भगवानाह-हे गौतम ! 'अभितरियाए साइरेगाइं पंचपलिओवमाई मज्झिमियाए परिसाए चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता' आभ्यन्तरिकायां पर्पदि सातिरेकपल्योपमानि, माध्यमिकायां चत्वारि पल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता, 'बाहिरियाए परिसाए तिन्नि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता' बाह्यायां पर्पदि तु त्रीणि पल्योपमानि देवीनां स्थितिः प्रज्ञप्ताः, इति । 'अट्ठो तहेव भाणिन्तर परिषदा के देवों की स्थिति सात पल्योपम की कही गई है। 'मज्झिमियाए छपल्लिओवमाई बाहिरियाए पंच पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता' मध्य परिषदा के देवों की ६ पल्योपम की स्थिति कही गई है बायपरिषदा के देवों की स्थिति पांच पल्योपम की कही गई है 'देवीण पुच्छा' हे भदन्त ! ईशान देवेन्द्र के विमान में देवियों की स्थिति कितनी कही गई है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'अभितरियाए साइरेगाइं पंच पलिओवमाई मज्झिमियाए परिसाए चत्तारि पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता बाहिरियाए परिसाए तिण्णि पलिओवमाई ठिती प०' हे गौतम ! आभ्यन्तर परिषदा की देवियों की स्थिति पांच पल्योपम की कही गई है मध्य परिषदा की देवियों की स्थिति चार पल्योपम की कही गई है और वोह्यपरिषदा की देवियों की स्थिति पण्णत्ता' न देवनी सायन्त। परिषहामान वानी स्थिति सात पक्ष्यो५मनी पाभा मावेस छ. 'मझिमियाए छ पलिओवमाई बाहिरियाए पंच पलिओश्माई ठिती पण्णत्ता' मध्यम परिहान वानी स्थिति छ पक्ष्यापभनी કહેવામાં આવેલ છે. અને બાહ્ય પરિષદાના દેવની સ્થિતિ પાંચ પાપમની ४स छे. 'देवीणं पुच्छा है मगवन् ! शनि देवेन्द्रना विभानमा क्यानी સ્થિતિ કેટલી કહેવામાં આવેલ છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુત્રી કહે છે કે 'अभितरियाए साइरेगाई पंच पलिओवमाई मज्झिमियाए परिसाए चत्तारि पलिओवमाइं ठिती पण्णत्तो बाहिरियाए परिसाए तिण्णि पलिओक्साइं ठिई पण्णत्ता' હે ગૌતમ ! આભ્યન્તર પરિષદાની દેવિયની સ્થિતિ પાંચ પલ્યોપમની કહે વામાં આવેલ છે. મધ્યમ પરિષદાની દેવિચોની સ્થિતિ ચાર પામની કહે વામાં આવેલ છે. અને બાહ્ય પરિષદાની દેવિયેની સ્થિતિ ત્રણ પાપમની डपामा मावेश छ. 'अटो तहेव भाणियव्वो' मा शिवाय मातीनुस
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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