SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1052
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०३० जीवाभिगमसूत्रे यवो' अर्थस्तथैव सौधर्मप्रकरणवत् भणितव्यः । 'सणंकुमाराणं पुच्छा०' कुत्र खलु भदन्त ! सनत्कुमाराणां विमानानि ? कुन च ते सनत्कुमाराः परिवसन्ति ? 'तहेव ठाणपदगमेणं जाव सणंकुमाररस तओ परिसाओ समिताई तहेच' तथाएव यथा प्रज्ञापना द्वितीयपदस्था भवनपतिवासिनः तेषां यावद्गमेन सनत्कुमारस्य तिस्रः पर्पदः समिताद्याः, भगवानाह-हे गौतम ! सौधर्मकल्पस्योपरिसपक्ष सप्रतिदिशि बहुयोजनानि, बहुयोजनशतानि, बहुयोजनसहस्राणि, वहुयोजनशतसहस्राणि, बहुयोजनकोटीः बहुयोजनकोटिकोटी: ऊर्ध्वं दुरं व्यतिव्रज्य अत्र खलु सनत्कुमारो नाम कल्पः प्रज्ञप्ता, समानाः पूर्वाऽपर-दक्षिणोत्तररूपाः पार्था एवपक्षा यत्र दुरमुत्पतने तत्सपक्षम् समानाः प्रतिदिग्विदिशो यत्रेत्यादिनिरवशेपं सौधर्मवत् । 'केवलं द्वादश विमानावासशतसहस्राणि भवे' इत्याद्यातीन पल्योपम की कही गई है 'अहो तहेव भाणियवो वाकी का और सब कथन सौधर्म प्रकरण के जैसा ही जानना चाहिये 'सणंकुमाराणं पुच्छा' हे भदन्त सनत्कुमारों के विमान कहां पर हैं ? और वे सनत्कुमार कहां पर रहते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'तहेव ठाणपद्गमेणं जाव सणंकुमारस्स तओ परिसाओ समिताइ तहेव' प्रज्ञापना के द्वितीय पद में भवनवासी देवों के गम के अनुसार सनत्कुमारों के सम्बन्ध में कथन जानना चाहिये तथा च सौधर्मकल्प के ऊपर सपक्ष सप्रति दिशाओं में-पूर्वादि चार दिशाओं में और विदिशाओं में यावत् अनेक कोडाकोडी योजन तक दूर जाने पर पूर्व पश्चिम तक लम्बा और उत्तर दक्षिण तक चौडा आदि विशेषणों वालो सनत्कुमार नाम का एक कल्प है इस में सनत्कुमार देवों के १२ लाख विमान हैं। इनमें पांच विमानावतंसक हैं-पूर्व दिशा में अङ्कावतंसक है दक्षिणदिशा में स्फटिकावतंसक है पश्चिम दिशा में रजता४थन सौधमः ५४२मा ४ा प्रमाणेनु रसमल व. सणकुमाराणं પુછી હે ભગવદ્ સનસ્કુમારના વિમાને કયાં આવેલા છે અને એ સનउभार हे ४५i २९ छ ? या प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४ छ है-'तहेव ठाण पदगमेणं जाव सणकुमारस्स तओ परिसाओ समिताइ तहेव' प्रज्ञापन सूत्रना બીજા સ્થાન પદમાં ભવનવાસી દેના ગામના કથન પ્રમાણે સનકુમારના સંબંધમાંનું કથન સમજી લેવું. તે આ પ્રમાણે–સૌધર્મ ક૯૫ની ઉપર સપક્ષ સપ્રતિ દિશાઓમાં–પૂર્વ વિગેરે ચાર દિશાઓમા અને વિદિશાઓમાં થાવત્ અનેક કેડા કેડી જન સુધી દૂર જવાથી પૂર્વ પશ્ચિમ સુધી લાંબુ અને ઉત્તર દક્ષિણ સુધી પહેલું વિગેરે વિશેષણવાળું સનકુમાર નામનું એક કપ છે. તેમાં સનકુમાર દેવાના ૧૨ બાર લાખ વિમાને છે,
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy