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________________ १०२८ যাগিশমই भिधानायां पर्पति दशदेव सहस्राणि, माध्यमिकायां चण्डाभिधानायां पर्पदि च द्वादशदेवसहस्राणि, वाह्यायां जाताभिधानायां तृतीयस्यां पपंदि चतुर्दशदेवसहस्राणि संख्यया प्रज्ञप्तानि-इति । 'देवीणं पुच्छा' हे सदन्त ! ईशानस्य देवेन्द्र देवराजस्याभ्यन्तरिकायां कति देवी शतानि, माध्यमिकायां कति०, वाह्यायां च कति देवीशतानि प्रज्ञप्तानि ? भगवानाह-हे गौतम ! 'अभितरियाए णव देवीसया पन्नत्ता' ईशानदेवेन्द्र देवराजस्याभ्यन्तरिकायां पर्पदि नव देवीशतानि प्रज्ञप्लानि, 'मज्झिमियाए परिसाए' मध्यमिकायां पर्पदि 'अट्ठ देवीसया पन्नत्ता' अष्टौ देवी शतानि प्रज्ञप्तानि-कथितानि तद्यथा-'बाहिरियाए परिसाए' ईशानदेवेन्द्र देवराजस्य वाह्याभिधायां जातायां तृतीयस्यां पर्पदि 'सत्त देवीसया पन्नत्ता' सप्तदेवीशतानि प्रज्ञप्तानि-कथितानि-इति । ___'देवाणं० ठिई पन्नत्ता' ईशानदेवेन्द्र विमाने कियती स्थिति देवानाम् ? भगवानाह-हे गौतम ! 'अभितरियाए परिसाए देवाणं सत्तपलिओवमाई ठिई चउद्दस्स देव साहस्सीओ' बाह्यपरिषदा में १४ हजार देव कहे गये हैं । 'देवीणं पुच्छा' हे भदन्त ! इन आभ्यन्तर मध्य और बाह्यपरिषदा में कितनी देवियां कही गई है ? 'अभितरियाए णवदेवी सता पण्णत्ता' उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम ! आभ्यन्तर परिषदा में ९ सौ देवियों कही गई है 'मज्झिमियाए परिसाए अहदेवी सता पण्णता' मध्यपरिपदा में आठ सौ देवियां' कही गई हैं । 'बाहिरियाए परिसाए सत्त देवी सता पण्णत्ता' बाह्यपरिषदा में ७०० देवियों कही गई हैं 'देवाण ठिती पण्णत्ता' हे भदन्त ! इन परिषदाओं के देवों की स्थिति कितनी कहीं गई हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम ! 'अतिरियाए परिसाए देवाणं सत्त पलिओवमा ठिती पण्णत्ता' ईशानदेव की आभ्य. 'बाहिरियाए चउहरस देव साहस्सीओ' माह्य परिषहामा १४ यौह त२ हेवा डेटा छे. 'देवीणं पुच्छा' सगवन्! मा मास्यतर, मध्य मन माह - परिहामा टसी विया हुवामा मावस छ? 'अभितरियाए णव देवीसया qvdi આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુત્રી કહે છે કે હે ગૌતમ આભ્યન્તર પરિबहामा ८०० नवस हेवियो डी छ. 'मज्झिमियाए परिसाए अट्ट देवी सया पण्णत्ता' भायम परिषहामा सो हवियो वामां मावेस छ. 'बाहिरियाए परिसाए सत्त देवीसया पण्णत्ता' मा परिप४मा ७०० सात विय। ४९. पामां आवे छे. 'देवाणं ठिती पण्णत्ता' है सावन् ! म परिपहायामाना દેવેની સ્થિતિ કેટલી કહેવામાં આવેલ છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે छ 3-3 गौतम ! 'अभितरियाए परिसाए देवाणं सत्त पलिओवमाईठिती
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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