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________________ ७६६ जीवामिगमस्त्र कमलविशेषः, पद्मं सूर्यविकासि, कुमुदं चन्द्रविकासि, नलिनम्-ईपद्रक्त पद्म सुभगं पद्मविशेषः सौगन्धिक कल्हारम्, पौण्डरीकं सिताम्बुजम् तदेव वृहन्महापौण्डरीकम्, शत पत्रप्तरसाने पद्मविशेषौ पत्रसंख्याकृतभेदो, एभिः प्रफुल्लैः-विकसितैः केसरेति केसरोपलक्षित रुपचिता उपचितशोमाका द्वीपसमुद्राः । 'पत्तेयं पत्तेय' प्रत्येकं प्रत्येकम् एकैको द्वीपः समुद्रश्चेत्यर्थः 'पउमवरवेइयापरिक्खित्ता' पदमवरवेदिकापरिक्षिप्ताः 'पत्तेयं पत्तेयं दणसंडपरिक्खित्ता' प्रत्येकं प्रत्येकं वनषण्डपरिक्षिप्ताः सन्ति, एतादृशाः 'अरिस तिरिर लोए' अस्मिन् तिर्यग्लोके 'असंखेज्जा दीव समुदा सयंभूरमणपज्जवसाणा' असंख्येया द्वीपसमुद्राः स्वयंभूरमणपर्यवसाना जम्बूद्वीपादयो द्वीपा. स्वयंभूरमणद्वीपपर्यवसाना', लवणसमुद्रादयः समद्राः स्वयंभूरमणसमुद्रपर्यवसानाः, ‘पण्णता समणाउसो !' प्रज्ञप्ता:-कथिताः हे श्रमण ! नलिनों से पत्रों से सुभगों से पद्मविशेषों से सौगन्धिकों से विशेष प्रकार के कमलों से पौण्डरीकों से सफेद कमलों से वडे २ पुण्ड. रीकों से शतपत्र थाले कमलों से और सहस्रपत्रों वाले कमलों से ये हीप. और समुद्र सदा उपचित शोभावाले बने रहते है । 'पत्तेयं पत्तेय पउमवर वेहया परिक्खित्ता' ये प्रत्येक द्वीप और समुद्र पद्मवरवेदिका से घिरे हुए है 'पत्तेयं पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ता' ये प्रत्येक वनखण्ड से विढे हुए है-'अस्सि तिरियलोए असंखिज्जा दीवसमुद्दा सयंभूरमणपज्जवसाणा पण्णत्ता समणाउसो' हे श्रमण आयुष्मन् इस तिर्यग्लोक में ऐसे ये द्वीप एवं अन्तिम समुद्र स्वयंभूरम गद्वोपतक और अन्तिम स्वयंभूरमणसमुद्र तक असंख्यात है। 'अस्सि तिरियलोए' इस सूत्रपाठ द्वारा द्वीपसमुद्रों का स्थान सूत्रकारने प्रकट किया है 'असंखेज्जा' નલિનોથી પત્રથી, સુભગોથી પદ્મવિશેષથી સૌગન્ધિકોથી વિશેષ પ્રકારના કમળોથી ઊંડરીક સફેદ કમળથી મેટા મેટા પૌંડરિકેથી શતવ્ર સોપાંખડીવાળા કમળથી અને હજાર પાખડીવાળા કમળોથી એ દ્વીપ અને સમુદ્ર સદા શોભાય भान यता २९ छे. 'पत्तेय' पत्तेय पउमवरवेइया परिक्खित्ता' मा ६२४ द्वीय भने समुद्र, ५१२ हाथी राय छे. 'पत्तेयं पत्तेयवणस डपरिक्खित्ता' मा ४२६ दी५ समुद्र पनमथा घरायेदा छे. 'अस्सि तिरियलोए अस खिन्जा दीवसमुद्दा सय भूरमणपज्जवसाणा पण्णत्ता समणाउसों' हे श्रभर मायुभन् આ તિર્યકમાં એવા આ દ્વીપ અને અતિમ સમુદ્રો સ્વયંભૂરમણ દ્વીપ पर्यन्त मन मतिम स्वयमूरमय समुद्र पर्यन्त मसभ्यात छे. 'अस्मि तिरियलोए' मा सूत्रपा द्वारा द्वीप समुद्रोनु स्थान सूत्ररे प्रगट ३८ . 'अस खेज्जा' मा सूत्रा द्वारा दी५ समुद्रोनी सध्या प्रगट ४२ छे. 'दुगुणा
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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