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________________ प्रमेययोतिका ठीका प्र. ३ उ. ३ २०५१ द्वीपसमुद्र निरूपणम् 55 a हे आयुष्मन् ! ' अस्सि चिरियलोए' इत्यनेन स्थानं कथितम् ' संखेज्जा' इत्यनेन संख्या कथिता, 'दुगुणा दुगुणं' इत्यादिना प्रमाणं कथितम् 'सठाणओ' इत्यादिना संस्थानं कथितमिति । सम्पति - आकार भाव प्रत्यवारं विवक्षुरिमाह-'दत्य' इत्यादि, ७२७ 'तत्थ णं अयं जंबुद्दीवे णामं दीवे' तत्र तेषु द्वीपसमुद्रेषु मध्ये खलु अयं यत्र वसामो वयं स जम्बूद्वीषो नाम द्वीपोऽस्ति । स कथं भूत: ? तत्राह - 'दीवसमुद्दाणं' इत्यादि, 'दीव मुद्दाणं अतिरिए' सर्व द्वीपसमुद्राणां सर्वाभ्यन्तरक; सर्वा मना सामस्त्येन अभ्यन्तरः सर्वाभ्यन्तरः सर्वाभ्यन्तर एवं सभ्यन्तरकः, तथाहिसर्वेऽपि शेषा द्वीपसमुद्राः जम्बुद्वीपादारभ्यागनकथितप्रकारेण द्विगुणद्विगुण विस्तरास्ततो भवति जम्बूद्वीपो द्वीपः सर्वाभ्यन्तरकः, अनेन जम्बुद्वीपस्यावस्थानं कथितमिति । इममेव वर्णयति- 'सच्चखुड्डा ए' इत्यादि, अयं जम्बूद्वीपो द्वीपः 'सन्धखुड्डाए' सर्वक्षुल्ककः सर्वेभ्योऽपि द्वीपसमुद्रेभ्यः क्षुल्लको घुरिति सर्व इस सूत्रपाठ द्वारा द्वीपसमुद्रो की संख्या प्रकट की है । 'दुगुणा दुगुणं' इस सूत्रपाठ द्वारा उनका प्रमाण बतलाया गया है 'संठाणओ' इस पद द्वारा उनका संस्थान कहा गया है 'तत्यर्ण अयं जंबुद्दीवे णासं दीवे दीवसमुद्दाणं अतिरिए सव्वखुड्डाए बट्टे तेल पठाण संठिते बट्टे रहचक्कवाल संठाण संटिते बटूटे' उन द्वीप समुद्रो के वीच में सबसे पहिला जम्बूदी नामका द्वीप की जिसमें हमलोग रहते हैं इसीलिये इसे 'दीयसमुद्द णं अमिरिए' इस पद से विशेपत किया गया है क्योंकि समस्त द्रोपन्मुः जम्बूद्वीप से लगाकर ही आगमोक्त प्रकार के अनुसार दुने र विस्तारवाले प्रकट किया है । अब जम्बूदीप का वर्णन करते है । 'सव्वखुड्डाए' यह जम्बूद्वीप सबसे छोटा है । 'सबखुड्डाए' इस पद के द्वारा यह समझाया गया है। कि यह जम्बूदीप दुगुण' मा सूत्रपाठ द्वारा तेभनु अभय तावत्रा भावे छे. सटाणओ' थे पाठ द्वारा तेनु ं संस्थान उडेल हे 'तत्थ णं जय जवुहोवे णाम दीवे दीवाण अतिरिए सव्व बुड्डाए वट्टे वेल्लापूयस ठाणच ठिते वट्टे रद्दचक्क - व लस ठाणस ठिवे वट्टे' यो द्वीप समुद्रोमा सौधी पडे ४ द्वीप नाभा द्वीप ठे नेमा आयो २४ मे छी तेया तेने 'दीव समुदाणं' अभितरिए' मे पहथी વિશેષિત કરેલ છે. કેમકે સઘળા દ્વીપ અને સમુદ્રો જ બુદ્વીપથી આગમાક્ત પ્રકાર પ્રમાણે ઋષણા ખમજીા વિસ્તારવાળા બનાવેલ છે. . ભીને જ हवे ही वन वामां आवे छे. 'सव्वखुट्टाए' मा मूद्रीय सौदी नाना है. 'सखुट्टाए' मा यह द्वारा से समन्ववामां आयु है
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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