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________________ ४५२ जीवाभिगमसूत्रे ग्योनिकाः स्त्रियः सख्येयगुणा अधिका भवन्ति बृहत्तर प्रतरासंख्येय भागवर्ण्य संख्येयश्रेणिगता काशप्रदेशराशिप्रमाणत्वात् स्थलचरीणामिति । 'जलयर तिरिक्खजोणित्थीओ संखेज्जगुणाओ' स्थलचर्यपेक्षया जलचरतिर्यग्योनिकस्त्रियः सख्येयगुणा अधिका भवन्ति बृहत्तम - प्रतरासंख्येयभागवत्यै सख्ये य श्रेणिगताकाशप्रदेश रागिप्रमाणत्वात् जलचरीणामिति । 'वाणमंतर - देवित्थओ संखेज्जगुणाओ' वानव्यन्तरदेवस्त्रियो जलचर्यपेक्षया संख्येयगुणा अधिकाभवन्ति, सख्येययोजनकोटा कोटीप्रमाणैकप्रादेशिक श्रेणिमात्राणि खण्डानि यावन्त्येकस्मिन् प्रतरे भवन्ति तेभ्यो द्वात्रिंशत्तमे भागे अपहृते यावान् राशिरवतिष्ठते तावत्प्रमाणत्वात् व्यन्तरीणामिति । 'जोइसियदेवित्थीओ संखज्जगुणाओ' वानव्यन्तग्देव्यपेक्षया ज्योतिष्कदेवस्त्रियः | ओ सं खेज्जगुणाओ” खेचर स्त्रियों की अपेक्षा स्थलचर तिर्यग्योनिक स्त्रियां सख्यात गुणी अधिक हैं । क्योंकि स्थलचर स्त्रियों का प्रमाण वृहत्तर जो प्रतर का असंख्यातवां भाग है उस असंख्यातवें भाग में रही हुई जो असंख्यात श्रेणिगत अकाश प्रदेश राशि है तत्प्रमाण है । 'जलय र तिरिक्खजोणित्थीओ संखेज्जगुणाओ' स्थलचर स्त्रियों की अपेक्षा जलचरतिर्यग्यो निक जो स्त्रियां हैं वे संख्यात गुणी अधिक हैं। क्योंकि इनका प्रमाण वृहत्तम अत्यन्तवड़े प्रतर के असंख्यातवें भाग में स्थित जो असंख्यात श्रेणिगत आकाश प्रदेश राशि है उतना कहा गया हैं ' वाणमंतर देवित्थी ओ संखेज्जगुणाओ' जलचर स्त्रियों की अपेक्षा वानव्यन्तर देवस्त्रियां संख्यात गुणी अधिक हैं । क्योंकि व्यन्तर स्त्रियों का प्रमाण - सख्यात कोटा कोटी योजन प्रमाण एक प्रदेशो की श्रेणि के जितने खण्ड एक प्रतर में होते हैं उनमें से बत्तीसवें भाग को कम करने पर जो राशि बचती है उतनो कहा गया है "जोइसियदेत्रित्थीओ संखेज्जगुणाओ” वानव्यन्तरदेवस्त्रियों की अपेक्षा ज्योतिष्क देवस्त्रियां संख्यात गुणी हैं- कैसे अधिक नोणित्थओ संखेज्जगुणाओ" मेयर खियो ४रतां स्थसयर तिर्य योनिः खिये। संख्यातગણી વધારે છે. કેમકે—સ્થલચર શ્રિયાનુ પ્રમાણ બૃહત્તર કે જે પ્રતરના અસંખ્યાતમા ભામ છે ล અસ ખ્યાતમાં ભાગમાં રહેલી અસ ખ્યાત શ્રેણીમાં રહેલ આકાશ प्रदेशराशि छे तेट छे "जलयरतिरिषखजोणित्थीको संखेज्जगुणाओ” સ્થલચર ક્રિયા કરતાં જલચર તિયયાનિક સ્ત્રિયા સખ્યાતગણી વધારે છે કેમકે—તેનું પ્રમાણુ બૃહત્તમ—અત્યંત મોટા પ્રતર ના અસ`ખ્યાતમા ભાગમાં રહેલ જે અસખ્યાતश्रेणिभां रहेस माझश अहेश राशि छे, भेटसु उडेल हे " वाणमंतर देवित्थीओ संखेज्जगुणा" सर स्त्रियो उरता वानव्यांतर हेवानि देवियो सभ्याताशी वधारे हे भट्ठेવ્ય′તર ખ્રિયાનુ પ્રમાણુ-સ`ખ્યાત કટા કાટિ ચેાજન પ્રમાણ એટલે કે એક પ્રદેશેાની શ્રેણીના જેટલા ખંડ એક પ્રતરમાં હાય છે, તેમાંથી ખત્રીસમાભાગને કમ કરવાથી જે રાશિ शेष रहे भेटतु महेस हे "जोइसियदेवित्थाओ संखेज्जगुणाओ" वानव्यन्तर हेवानीદૈવિયેા કરતાં જ્યેાતિ દેવાની દૈવિયે સખ્યાતગણી છે, તે કેવીરીતે...તે ભાવના–પ્રકાર
SR No.009335
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages690
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size45 MB
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