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________________ ३८६ जीवाभिगमसूत्र 'खेत्तं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं'क्षेत्रं प्रतीत्य -आश्रित्य जघन्येनान्तर्मुहूर्त्ता स्थितिः, उत्कर्षण त्रीणि पल्योपमानि स्थितिर्भवतीति । 'धम्मचरणं पडुच्च' धर्मचरण चरणधर्म प्रतीत्य आश्रित्य तु 'जह. न्नेणं अंतोमुहुत्तं' जघन्येनान्तर्मुहूर्तम् 'उक्कोसेणं देरणा पुन्चकोडी' उत्कर्षेण देशोना पूर्वकोटिप्रमाणा स्थितिर्मवतीति । 'पुच्चविदेहअवरविदेहकम्मभूमगमणुस्सित्थीणं भंते' पूर्वविदेहापरविदेहकर्मभूमिकमनुष्यस्त्रीणां भदन्त । 'केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता' कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता-कथितेति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम । 'खेत पडुच्च' क्षेत्रं प्रतीत्य आश्रित्य 'जहन्नेणं अंतोमुहुत्त' जघन्येन अन्त मुहूर्तम् 'उवकोसेणं देखणा पुन्चकोडी' उत्कर्षेण देशोना पूर्वकोटिः, 'धम्मचरणं पडुच्च' धर्मचरणंप्रतीत्य आश्रित्य 'जहन्नेणं अंतोमुहुत्त' जघन्येन अन्तमुहूत 'उक्कोसेणं देसूणा पुवकोडी' की भवस्थिति कितने काल की कही गई है ? "गोयमा । खेत्तं पडुच्च जहन्नेणं अंतो मुहुत्तं०" हे गौतम । क्षेत्र की अपेक्षा लेकर तो इनकी जघन्य स्थिति एक अन्तर्मुहूर्त की कही गई हैं और उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योमकी कही गई हैं "धम्मचरणं पडुच्च जहन्नेणं अतोमुहुत्तं उक्कोसेणं देसूणा पुवकोंडी" धर्म चारित्र धर्मस्वीकार करनेकी अपेक्षा जघन्य से एक अन्तर्मुहूत की और उत्कृष्ट से कुछकम एक पूर्वकोटि की इनकी भवस्थिति कही गई है । 'पुब्वविदेह अवर विदेह कम्मभूमिगमणुस्सित्थीण भते । केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता" हे भदन्त ! पूर्वविदेह और अपरविदेह रूप कम भूमिकी मनुष्यस्त्रियो की भवस्थिति कितने काल की कही गई है ! उत्तर में प्रभु कहते हैं-"खेत्तं पडुच्च जहन्नेणं अंतो मुहुत्त उक्कोसेणं पुन्चकोडी" हे गौतम ! क्षेत्र की अपेक्षा लेकर इनको जघन्य स्थिति तो एक अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति एक पूर्वकोटी की है क्योंकि यहाँ पर उत्कृष्ट स्थिथि इतनी ही कही गई है तथा "धम्मचरणं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्त उक्कोसेणं-- "गोयमा ! खेत्तं पडुच्च जहणेणं अंतोमुहत्त" है गौतम ! क्षेत्रनी अपेक्षाथी तो તેમની જઘન્ય સ્થિતિ એક અંતર્મુહર્તાની કહેવામાં આવી છે, અને ઉત્કૃષ્ટથી ત્રણ પત્યેपभनी स्थिति ४८ "धम्मचरणं पदुच्च जहण्णेणं अतोमुहत्तं उक्कोसेणं देरणा पुवकोडी" याति-धर्म पी१२ ४२वानी अपेक्षा से धन्यथी से मत इतनी અને ઉત્કૃષ્ટથી કંઈક ઓછી એક પૂર્વકેટિની તેઓની ભવસ્થિતિ કહેવામાં આવેલ છે. 'पुव्वविदेहअवरविदेहकभभूमिगमणुस्सित्थीण भंते ! केवइयं काल ठिई पण्णत्ता" હે ભગવન પૂર્વ વિદેહ અને અપર વિદેહ રૂપ કર્મભૂમિની મનુષ્ય સ્ત્રિની ભવસ્થિતિ કેટसनी ४ामा आवी छ ! मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४ छ ४-'खेत्तं पढच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुवकोडी" गौतमा क्षेत्रनी अपेक्षाथी तेयानी धन्य स्थिति એક અંતર્મુહૂર્તની છે અને ઉત્કૃષ્ટથી એક પૂર્વ કેટિની કેમકે-અહિંયાં ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ એટલી જ ४२ छ. तथा "धम्मचरणं पडच्च जहण्णेणे अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं देसूणा पुवकोडी"
SR No.009335
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages690
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size45 MB
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