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________________ १२० श्रीजीवाभिगमसूत्रे किन्तु 'तिरिक्खजोणिएर्हितो उववज्जति मणुस्सेहिंतो उववज्र्ज्जति' तिर्यग्योनिकेम्य आगत्योत्पद्यन्ते मनुष्येभ्यो वाऽऽगत्योत्पद्यन्ते 'नो देवेर्हितो उववज्जंति' नो देवेभ्य आगत्य सूक्ष्मपृथिवी कायिकरूपेणोत्पद्यन्ते इति देवानां तन्मध्ये उत्पादाभावात इति, 'तिरिक्खजोणिय पज्जत्तापज्जत्ते हितो असंखेज्जवासाउयवज्जेहिंतो उववज्जंति' यदा तिर्यग् योनिकेभ्य आगत्योत्पद्यन्ते तदा तिर्यग्योनिकपर्याप्तकापर्याप्तकेभ्योऽसख्येयवर्षायुष्कवर्जेभ्य एवोत्पद्यन्ते यदा मनुष्येभ्यः सूक्ष्मपृथिवीकायिका उत्पद्यन्ते तदा 'मणुस्सेर्हितो अक्रम्मभूमिगअसंखेज्जवासाउयवज्जेहिंतो उववज्जंति' मनुष्येभ्योऽकर्मभूमि कास रूयेय वर्षायुष्कवर्जेभ्य एव ते सूक्ष्मपृथिवीकायिकाः समुत्पद्यन्ते 'चक्कंती उनवाओ भाणियन्त्रो' व्युकान्त्यु नो नेrsहिंतो उववज्जंति" हे गौतम ! नैरयिक मरकर सूक्ष्मपृथिवीकायिक रूप से उत्पन्न नहीं होते है किन्तु “तिरिक्जोणिएहिंतो उववज्जंति, मणुस्सेहिंतो उववज्जंति" तिर्यग्योनिक जीव मरकर सूक्ष्मपृथिवीकायिक रूप से उत्पन्न होते हैं और मनुष्य मरकर सूक्ष्मपृथिवोकायिक रूप से उत्पन्न होते हैं किन्तु "नो देवेहिंतो उववज्जंति' देव च्यव कर सूक्ष्मपृथिवीकायिक रूप से उत्पन्न नहीं होते है “तिरिक्खजोणियपज्जत्तापज्जत्तेहिंतो असंखेज्जवासाउयवज्जे हितो उववज्जंति" जब सूक्ष्मपृथिवीकायिकरूप से तिर्यञ्च योनिक जीव मरकर उत्पन्न होते है तो उनमें जो असख्यातवर्ष की आयु वाले भोगभूमि के तिर्थश्च है वे मरकर सूक्ष्मपृथिवी कायिक रूप से उत्पन्न नहीं होते हैं । किन्तु कर्मभूमिज तिर्यञ्च ही चाहे वे पर्याप्तक हों चाहें अपर्याप्तक हो मरकर सूक्ष्मपृथिवी - कायिकरूप से उत्पन्न होते है । तथा मणुस्सेहिंतो अकम्मभूमियअसंखेज्जवासाउयवज्जेहिंतो उववज्जंति" जब मनुष्यों में से मरकर नीव सूक्ष्मपृथिवीकायिक रूप से उत्पन्न होते हैं - तब वहां पर भी अकर्मभूमि के अन्तर द्वीप के और असख्यान वर्ष आयु वाले हे गौतम नरयि भरीने सूक्ष्मपृथ्वी अयि पद्याथी उत्पन्न थता नथा परंतु "तिरिक्खजोणिहितो उववज्जंति मणुस्सेहिंतो उववज्जंति" तिर्यग्येानिव भरीने सूक्ष्मपृथ्वीअयि पायाथी उत्यन्न थाय छे, परन्तु 'नो देवेहिंतो उघवज्जंति” देव भ्यवीने सूक्ष्मपृथ्वी अयि पाथी उत्पन्न थता नथी “तिरिक्खजोणिय पज्जत्ता पजत्तेर्हितो असंखेज्जवासाज्यघज्जेर्हितो उववज्जति” न्यारे सूक्ष्मपृथ्वी अयि पाथी तिर्यथये। निम्लव भरीने ઉત્પન્ન થાય છે, તે તેએમાં જે અસખ્યાત વષઁની આયુષ્ય વાળા ભાગ-ભૂમિના તિય ચ છે, તેઓ મરીને સૂક્ષ્મપૃથ્વીકાયિક પણાથી ઉત્પન્ન થતા નથી પરંતુ કમભૂમિ જ તિય ચા જ ચાહે તે પર્યાપ્તક હાય ચાહે અપર્યાપ્તક હોય મરીને સૂક્ષ્મપૃથ્વીકાયિક પણાથી उत्पन्न थाय छे तथा “मणुस्सेर्हितो अकम्मभूमिय असंखेज्जवासा उयवज्जेद्दितो उववज्जंति' જયારે મનુષ્યોમાંથી મરીને જીવ સૂક્ષ્મપૃથ્વીકાયિક પણાથી ઉત્પન્ન થાય છે, ત્યારે ત્યાં પશુ ક ભૂમિના અંતરદ્વીપના અને અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા કમ ભૂમિના મનુષ્યાને
SR No.009335
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages690
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size45 MB
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