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________________ प्र. १ आहारद्वारनिरूपणम् १०५ हे गौतम ? 'ठाणमग्गणं पडुच्च' स्थानमार्गणं प्रतीत्य-सामान्यचिन्तामाश्रित्य 'नो एगफासाई आहारेंति नो दुफासाइं आहारेंति नो तिफासाई आहारेंति' नो एकस्पर्शविशिष्टद्रव्याणि आहरन्ति, नो - नवा द्विस्पर्शयुक्तद्रव्याणि आहरन्ति, न वा त्रिस्पर्शयुक्तद्रव्याणि आहरन्ति किन्तु 'चउफासाई पि आहारेंति, पंचफासाई पि आहारेंति जाव अहफासाई पि आहारेंति' चतुः स्पर्शान्यपि आहरन्ति, पञ्चस्पर्शयुक्तद्रव्याण्यपि आहरन्ति, यावदष्टस्पर्शयुक्तान्यपि आहरन्ति, अत्र यावत्पदेन षट्सप्तमयो ग्रहणं भवति, 'विहाणमग्गरं पड्डच्च कक्खडाई पि आहारेंति' विधानमार्गणं प्रतीत्य तु कर्कशान्यपि आहरन्ति 'जाव लुक्खाई पि आहारेंति' यावद् रूक्षाण्यपि आहरन्ति, अत्र यावत्पदेन मृदुगुरुलघुशीतोष्णस्निग्धाना सग्रहो भवति, इति भावः । ठाणसग्गणं पडुच्च', सामान्य विचार की अपेक्षा तो वे "नो एगफासाइं आहारेति नो दुफासाई आहारे ति, नो तिफासाईआहारेति" हे गौतम ! न एक स्पर्श वाले होते है न दो स्पर्श वाले होते हैं और न तीन स्पर्श वाले होते है अर्थात् वे न एक स्पर्श से युक्त द्रव्यों का आहार करते है न दो स्पर्शी से युक्त द्रव्यो का आहार करते है और न तीन स्पर्शी से युक्त द्रव्यो का आहार करते हैं, किन्तु "चउफासाई पि अहारेंति पंच फासाई पि आहारति जाव अट्ठफासाई पि अहारेंति" वे चार स्पों से युक्त द्रव्यो का आहार करते हैं पांच स्पशी से युक्त द्रव्यों का भी आहार करते है यावत् माठ स्पर्शों से युक्त द्रव्यो का भी आहार करते है। यहां यावत्पदसे "छह स्पर्शो से एवं सात स्पर्शों से युक्त द्रव्यों का आहार करते हैं" ऐसा कहा गया है। "विहाणमग्गण पडुच्च कक्खडाई पि आहारेंति' विधान मार्गणा को आश्रित करके कर्कशस्पर्श वाले पुद्गलों का भी वे आहार करते है "जाव लुक्खाई पि आहारेंति" यावत् रूक्षस्पर्शवाले पुद्गलों का भी आहार करते हैं । यहां यावत्पद से मृदु गुरु लघु शीत, उष्ण और महावीर प्रसुना उत्तर-"गोयमा ! ठाणमग्गण पुडच्च' सामान्य वियानी अपेक्षा तो तेयो “नो पगफासाइ आहारैति, नो दुफासाई आहारेंति, नो तिफासाई आहारेति" मे २५शवाजi ५ तi नथी, मे २५शवाणां प तi नथी, ३ २५शवाजi પણ હોતાં નથી, એટલે કે તેઓ એક, બે અથવા ત્રણ સ્પશવાળાં દ્રવ્યોને આહાર કરતા नथी, परंतु "चउफासाइ पि आहारेंति, पंच फासाइपि आहारेति, जाव अट्ठ फासाई पि आहारैति" तमो या२ २५i द्रव्योनी पY माडा२ ४२ छ, पांय २५i દ્રવ્યોનો પણ કરે છે, છ સ્પર્શેવાળાં દ્રવ્યોને આહાર પણ કરે છે, સાત સ્પર્શીવાળાં દ્રવ્યોને ५९ मा२ ४२ छे भने २मा स्पा द्रव्योनी पाय माडा२ ४२ छे "विहाणमग्गणं पडच्च फक्खडाइ पि आहारैति" विशेष दृष्टि विया२ ४२वामा माये, तो तो ४४२ २५शवाजi पुरानी माहा२ ५९ ४२ छ, “जाव लुक्खाई पि आहारेंति" भृढ २५शqni, ગુરુ સ્પર્શવાળાં, લઘુસ્પર્શવાળાં, શીત સ્પર્શવાળાં, ઉષ્ણ સ્પશવાળાં, સ્નિગ્ધ સ્પશવાળાં અને રૂક્ષ સ્પર્શવાળાં પુલને આહાર પણ કરે છે. १४
SR No.009335
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages690
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size45 MB
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