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________________ દ8 औपपातिकमा मूलम्-से जे इमे गमागर जाव सण्णिवेसेसुमणुया भवंति, तं जहा-सव्वकामविरया सव्वरागविरया सव्यसंगातीता सव्वसिणेहाइकंता अकोहा निकोहा खीणकोहा एवं माण टीका-'से जे इमे' इ यादि । 'से जे इमे गामागर जार सण्णिवेसेस मणुया भवति' अथ य इमे प्रामाऽऽकर यावत् मनिवेशपु मनुजा भवन्ति, 'त जहा' तथथा 'सनकामविरया' सर्वकामपिरता - सर्वकामेभ्य =ममत्तगन्दानिपिपयेभ्यो विरता = निवृत्ता, शन्दादिविपयेपु वा विरता-विगतौ मुस्या, 'सचरागविरया' सनरागविरतासर्वरागात्-समस्ताद् विषयाभिमुखहेतुभूताऽऽमपरिणामविशेषात् निवृत्ता, 'सबसगातोता' सर्वसङ्गाऽनीता -सर्वसङ्गात् मातापिनादिसम्बन्धादतीता विनिर्गता -सर्वसहरहिता इत्यर्थ , 'समसिणेहादकता' सर्वस्नहातिकान्ता स्नेहरहिता , 'अक्कोहा' अनोग। 'से जे इमे' इत्यादि। । (से जे इमे गामागर जाव सण्णिवेसेसु ) ये जो ग्राम । आकर आदि से लेकर सन्निवेश तक के निवासस्थानों मे (मणुया भाति) मनुष्य रहते है, (त जहा) जैसे (सन्यकामविरया सनरागविरया सबसगातीता सव्वसिणेहादकता) जो समल शब्दादिक विषयों से निवृत्त है, अथवा शब्दादिक विपयों मे जिहे उत्सुकता नहीं है, समस्त विषयों की ओर झुकाने वाले आ माके रागरूप परिणाम से जो निवृत्त है, मातापिता आदि समस्त सबधिजनों से अथवा समस्तप्रकार के परिग्रह से जो 'दूर हो चुके हैं, जिन्हों ने सम्पूर्णप्रकार का स्नेहभाव परिवर्जित कर दिया है । (अकोहा शिकोहा खीण 'से जे इमे' त्यहि (से जे इमे) मा २ (गामागर जाव सण्णिवेसेसु) गाम मा४२ MEथ ने सन्निवेश सुधाना निवासस्थानामा (मणुया भवति) मनुष्य २ छ, (त जहा ) २१ -( सव्वकामविरया सव्वरागविरया सव्वमगातीतो सध्यसिणेहाइक्कता) को समस्त Availes विषयोथी निवृत्त छ, मथवा શાદિક વિષયમા જેમને ઉત્સુકતા નથી હોતી, સમસ્ત વિષયોની તરફ બે ચવાવાળા આત્માના રાગરૂપ પરિણામથી જેઓ નિવૃત્ત છે, માતાપિતા આદિ વમસ્ત સ બ ધી નથી અથવા સમસ્ત પ્રકારના પરિગ્રહોથી જેઓ દૂર થઈ ડાયેલા છે, જેઓએ સંપૂર્ણ પ્રકારના નેહભાવને પરિવર્જિત કરી દીધેલ છે, मोदी णिक्कोहा वीणक्कोहा एन माणमायालोहा ) भने। 8ोध नष्ट थ
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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